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पृष्ठ:कर्बला.djvu/६७

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कर्बला

है, शराबी है; मगर ख़िलाफ़त को सँभाले हुए तो है। हुसैन की बैयत मुसलमानों में दुश्मनी पैदा कर देगी, ख़ून का दरिया बहा देगी, और खिलाफत का निशान मिटा देगी। ख़िलाफ़त क़ायम करना व देखना मेरा पहला फ़र्ज़ है। ख़लीफ़ा कौन और कैसा हो, यह बाद को देखा जायगा।

[ हुर का प्रस्थान ]

यज़ीद---नरगिस, रंदों में एक जाहिद था, वह खिसका, अब कोई मस्त करनेवाली ग़ज़ल गाओ। काश सल्तनत की फ़िक्र न होती, तो तुम्हारे हाथों शराब के प्याले पीता उम्र गुज़ार देता।

नर॰---खौफ़ से काँपती हुई बुलबुल मस्ताना ग़ज़लें नहीं गा सकती। शाख पर है, तो उड़ जायगी, क़फ़स में है, तो मर जायगी। मैंने खौफ़ से गुलशन को आबाद होते नहीं, वीरान होते देखा है। मेरा वतन कूफ़ा है, और मैं कूफ़ियों को खूब जानती हूँ। उन पर सख्तियाँ करके आप हुसैन को बुला रहे हैं। हुसैन कूफ़े में दाखिल हो गये, तो फिर आप हमेशा के लिए इराक़ से हाथ धो बैठेंगे। कूफ़ावाले रियायतों से, जागीरों से, वज़ीफ़ों से, थपकियों से काबू में आ सकते हैं, सख्ती से नहीं। अगर एतबार न हो, तो मुझ पर अपनी ताकत आजमा लो। अगर तुम्हारी दसों उँगलियाँ दस तलवारें हो जायें, तो भी आप मेरे मुँह से एक सुर भी नहीं निकलवा सकते। कूफ़ा मुसीबत में मुब्तिला है, मैं यहाँ नहीं रह सकती।

[ प्रस्थान ]

तीसरा दृश्य

[ कूफ़ा की अदालत---काज़ी और अमले बैठे हुए हैं। क़ाज़ी के सिर पर अमामा है, बदन पर कबा, कमर में कमरबंद, सिपाही नीचे कुरते पहने हुए हैं। अदालत से कुछ दूर पर एक मस्जिद है। मुकद्दमे पेश हो रहे हैं। कई आदमी एक शरीफ़ आदमी की मुश्के कसे लाते हैं। ]

क़ाज़ी---इसने क्या ख़ता की है?