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पृष्ठ:कर्बला.djvu/६८

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कर्बला

ए॰ आ॰---हुज़ूर, यह आदमी मस्जिद में खड़ा लोगों से कह रहा था कि किसी को फ़ौज में न दाख़िल होना चाहिए।

क़ाज़ी---गवाह है?

ए॰ सि॰---हुज़ूर, मैंने अपने कानों सुना है।

क़ाज़ी---इसे ले जाकर क़त्ल कर दो।

मुल॰---हुज़ूर, बिल्कुल बेगुनाह हूँ। ये दोनो सिपाही मेरी दूकान से कपड़े उठाये लेते थे। मैंने छीन लिया, इस पर इन्होंने मुझे पकड़ लिया। हुज़ूर मेरे पड़ोस के दूकानदारों से पूछ लें।बेगुनाह मारा जा रहा हूँ। मेरे बाल-बच्चे तबाह हो जायँगे।

क़ाज़ी---इसे यहाँ से हटाओ।

मुल॰---( चिल्लाकर ) या रसूल, तुम क़यामत के लिए मेरा और इस क़ातिल का फ़ैसला करना।

[ दोनो सिपाही उसे ले जाते हैं। मस्जिद की तरफ़ से आवाज़ आती है---]

"या खुदा हम बेकस तेरी बारगाह में फ़रियाद करने आये हैं। हमें ज़ालिम के फन्दे से आज़ाद कर।"

[ चार सिपाही १५-२० आदमियों की मुश्कें कसेकोड़े मारते हुए लाते हैं।]

क़ाज़ी---इन पर क्या इलज़ाम है?

ए॰ सि॰---हुज़ूर, ये उन आदमियों में हैं, जिन्होंने हुसैन के पास क़ासिद भेजे थे।

क़ाज़ी॰---संगीन जुर्म है। कोई गवाह?

ए॰ सि॰---हुज़ूर , कोई गवाह नहीं मिलता। शहरवालों के डर के मारे कोई गवाही देने पर राज़ी नहीं होता।

क़ा॰---इन्हें हिरासत में रखो, और जब गवाह मिल जायँ, तो फिर पेश करो।

[ सिपाही उन आदमियों को ले जाते हैं। फिर दो सिपाही एक औरत की दोनो कलाइयाँ बाँधे हुए लाते हैं। ]