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कर्बला

हारिस---वाह, अब तक वह यहाँ बैठा होगा।

सुले॰---मैंने सारी दास्तान लिख दी। कौन इस ख़त को ले जायगा?

शिमर---मैं हाज़िर हूँ।

सुले॰---किसके पास ऐसी साँड़नी है, जो थकना न जानती हो, जो इस तरह दौड़ सकती हो, जैसे ज़ियाद लूट के माल की तरफ़?

एक युवक---मेरे पास ऐसी साँड़नी है, जो तीन दिन में इस ख़त का जवाब ला सकती है। यह ख़िदमत बजा लाने का हक़ मेरा है, क्योंकि मुझसे ज़्यादा मज़लूम और कोई न होगा, जिसकी मा के बाल क़ाज़ी के हुक्म से अभी-अभी नोचे गये हैं।

सुले॰--–बेशक, तुम्हारा हक़ सबसे ज़्यादा है। यह ख़त लो, और इसके पहले कि हमारा पसीना ठंडा हो, मक्का की तरफ़ रवाना हो जाओ।

[ युवक चना जाता है। ]

आइए, हम लोग मस्जिद में नमाज़ अदा कर लें। खत का जवाब तीन दिन में आयेगा। हज़रत हुसैन के आने में अभी एक महीने की देर है। ज़ियाद भी शायद उसके पहले नहीं लौट सकता। ये दिन हमें अपनी तैयारियों में सर्फ़ करने चाहिए, क्योंकि यज़ीद की ख़िलाफ़त का फ़ैसला कूफ़ा में होगा। या तो वह ख़िलाफ़त के मसनद पर बैठेगा, या जाहिलों की इबादत का मज़ार बनेगा। अगर कूफ़ा ने ख़िलाफ़त को नबी के ख़ानदान में वापस कर दिया, तो उसका नाम हमेशा रोशन रहेगा।

[ सब जाते हैं। ]


चौथा दृश्य

[ स्थान---काबा, मरदाना बैठक। हुसैन, जुबेर, अब्बास, मुस्लिम, अली असग़र अादि बैठे दिखाई देते हैं। ]

हुसैन---यह पाँचवीं सफ़ारत है। एक हज़ार से ज़्यादा ख़्तूत आ चुके हैं। उन पर दस्तख़त करनेवालों की तादाद पन्द्रह हज़ार से कम नहीं है।