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कर्बला

मु॰---सारे शहर में एक भी सच्चा मुसलमान नहीं है?

दूसरा---जनाब, यहाँ कोई शहर के क़ाज़ी तो हैं नहीं, हाँ, मुख्तार की निस्बत सुनते हैं कि बड़े दीनदार आदमी हैं। हैसियत तो ऐसी नहीं, मगर ख़ुदा ने हिम्मत दी है। कोई ग़रीब चला जाय, तो भूखों न लौटेगा।

तीसरा---सुना है, उनकी जागीर जब्त कर ली गयी है।

मु॰---यह क्यों?

तीसरा---इसी लिए कि उन्होंने अब तक यज़ीद की बैयत नहीं ली।

मु॰---तुममें से मुझे कोई उनके घर तक पहुँचा सकता है?

चौथा---जनाब, यह ऊँटनियों के दुहने का वक़्त है; हमें फुरसत नहीं। सीधे चले जाइए, आगे लाल मस्जिद मिलेगी, वहीं उनका मकान है।

मु॰---खुदा तुम पर रहमत करे। अब चला जाऊँगा।

[ परदा बदलता है। मस्जिद के क़रीब मुख़्तार का मकान ]

मु॰---( एक बुड्ढे से ) यही मुख़्तार का मकान है न?

बुड्ढा---जी हाँ, ग़रीब ही का नाम मुख़्तार है। आइए, कहाँ से तशरीफ़ ला रहे हैं?

मु॰---मक्केशरीफ़ से।

मुख॰---( मुस्लिम के गले से लिपटकर ) मुआफ़ कीजिएगा। बुढ़ापे की बीनाई शराबी की तोबा की तरह कमज़ोर होती है। आज बड़ा मुबारक दिन है। बारे हज़रत ने हमारी फरियाद सुन ली खैरियत से हैं न?

मु॰---( घोड़े से उतरकर ) जी हाँ, सब ख़ुदा का फ़ज़ल है।

मुख॰---खुदा जानता है, आपको देखकर आँखें शाद हो गयीं। हज़रत का इरादा कब तक आने का है?

मु॰---( खत निकालकर मुख़्तार को देते हैं ) इसमें उन्होंने सब कुछ मुफ़स्सल लिख दिया है।

मुख॰---( ख़त को छाती और आँख से लगाकर पढ़ता है ) ख़ुशनसीब कि हज़रत के क़दमों से यह शहर पाक होगा। मेरी बैयत हाज़िर है, और मेरे दोस्तों को तरफ़ से भी कोई अंदेशा नहीं।