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पृष्ठ:कर्बला.djvu/८९

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कर्बला

उस जुल्म क नाकदरी न कीजिए, जिसने आपकी ग़ैरत को जगाया। यही मेरी मंशा थी, यही यज़ीद की मंशा थी, और ख़ुदा का शुक्र कि हमारी तमन्ना पूरी हुई। अब हमें यक़ीन हो गया कि हम अापके ऊपर भरोसा कर सकते हैं। ज़ालिम उस्ताद की भी कभी-कभी ज़रूरत होती है। हज़रत हुसैन-जैसा पाक-नीयत, दीनदार बुज़ुर्ग आपको यह सबक न दे सकता था। यह हम-जैसे कमीना, खुदग़रज आदमियों ही का काम था। लेकिन अगर हमारी नीयत खराब होती, तो आप आज मुझे यहाँ खड़े होकर उन रियायतों का ऐलान करते न देखते, जो मैं अभी-अभी करनेवाला हूँ। इन ऐलानों से आप पर मेरे क़ौल की सच्चाई रोशन हो जायगी।।

कई आवाजें---खामोश-खामोश, सुनो-सुनो।

ज़ियाद---खलीफ़ा यज़ीद का हुक्म है कि कूफ़ा और बसरा का हरएक बालिग़ मर्द पाँच सौ दिरहम सालाना खज़ाने से पाये।

बहुत-सी आवाजें---सुभानअल्लाह, सुभानअल्लाह

ज़ियाद---और कूफ़ा व बसरे की हरएक बालिग़ औरत दो सो दिरहम पाये, जब तक उसका निकाह न हो।

बहुत-सी आवाजे---सुभानअल्लाह, सुभानअल्लाह

ज़ियाद---और हरएक बेवा को सौ दिरहम सालाना मिलें, जब तक उसकी आँखें बन्द न हो जायँ, या वह दूसरा निकाह न कर ले।

बहुत-सी आ॰---सुभानअल्लाह, सुभानअल्लाह

ज़ियाद---यह मेरे हाथ में खलीफ़ा का फ़रमान है। देखिए, जिसे यक़ीन न हो। हरएक यतीम को बालिग़ होने तक सौ दिरहम सालाना मुक़र्रर किया गया है। हरएक जवान मर्द और औरत को शादी के वक्त एक हजार दिरहम एकमुश्त खर्च के लिए दिया जायगा।

बहुत-सी आवाजें---खुदा खलीफ़ा यज़ीद को सलामत रखे। कितनी फ़ैयाज़ी की है।

ज़ियाद---अभी और सुनिए, तब फ़ैसला कीजिए कि यज़ीद ज़ालिम है या रियाया-परवर? उसका हुक्म है कि हरएक क़बीले के सरदार को दरिया के किनारे की उतनी ज़मीन अता की जाय, जितनी दूर उसका तीर जा सके।