ज़ियाद---हाँ, आपने ज़रूर बेइन्सानी की है। मैं यह बिला ख़ौफ़ कहता हूँ, ऐसा आदमी इससे कहीं अच्छे बर्ताव के लायक़ था। हुसैन की इज़्ज़त यज़ीद के और मेरे दिल में उससे ज़रा भी कम नहीं है, जितनी और किसी के दिल में होगी। अगर आप उन्हें अपना ख़लीफ़ा तसलीम करते हैं, तो मुबारक हो। हम खुश, हमारा ख़ुदा खुश। यज़ीद सबसे पहले उनकी बैयत मंजूर करेगा, उसके बाद मैं हूँगा। रसूल पाक ने ख़िलाफ़त के लिए इन्तख़ाब की शर्त लगा दी है। मगर हुसैन के लिए इसकी क़ैद नहीं।
क़ीस---है। यह कैद सब के लिए एकसाँ है।
ज़ियाद---अगर है, तो इन्तख़ाब का इससे बेहतर और कौन मौक़ा होगा। आप अपनी रजा और रग़बत से किसी का लिहाज़ और मुरौवत किये बग़ैर जिसे चाहे ख़लीफा तसलीम कर लें। मैं कसरत राय को मानकर यज़ीद को इसकी इत्तिला दे दूँगा।
एक तरफ़ से---हम यज़ीद को खलीफ़ा मानते हैं।
दूसरी तरफ़ से---हम यज़ीद की बैयत क़बूल करते हैं।
तीसरी तरफ से---यज़ीद, यज़ीद, यज़ीद।
ज़ियाद---खामोश, हुसैन को कौन ख़लीफ़ा मानता है!
[ कोई आवाज़ नहीं आती ]
ज़ियाद---आप जानते हैं, यज़ीद आबिद नहीं।
कई आवाजें---हमें आबिद की ज़रूरत नहीं।
ज़ियाद---यज़ीद आलिम नहीं, फाज़िल नहीं, हाफ़िज़ नहीं।
कई आवाजें---हमें आलिम-फाज़िल की ज़रूरत नहीं।
हज्जाज---कितना फ़ैयाज़ है।
शिमर---किसी खलीफ़ा ने इतनी फ़ैयाजी नहीं की।
शीस---आबिद कभी फ़ैयाज़ नहीं होता।
अशअस---अजी, कुछ न पूछो, मस्जिदों के मुल्लाओं को देखो, रोटियों पर जान देते हैं।
ज़ियाद---अच्छा, यज़ीद को आपने अपना ख़लीफ़ा तो मान लिया, लेकिन हेजाज, मिस्र, यमन के लोग किसी और को ख़लीफ़ा मान लें तो?