में जाकर लाला से कहती हूँ। जब तक इस पाजी को शहर से न निकाल दूँगी, मेरा कलेजा न ठंडा होगा। मैं उसकी जिन्दगी गारत कर दूँगी।
सकीना ने निश्शंक भाव से कहा--अगर उनकी जिन्दगी गारत हुई, तो मेरी ग्रारत होगी। इसको समझ लो।
बुढ़िया ने सकीना का हाथ पकड़कर इतने जोर से अपनी तरफ़ घसीटा कि वह गिरते-गिरते बची और उसी दम घर से बाहर निकलकर द्वार की जंजीर बन्द कर दी।
सकीना बार-बार पुकारती रही, पर बुढ़िया ने पीछे फिरकर भी न देखा। वह बेजान बुढ़िया, जिसे एक-एक पग रखना दूभर था, इस वक्त आवेश में दौड़ी लाला समरकान्त के पास चली जा रही थी।
अमरकान्त गली के बाहर निकलकर सड़क पर आया। कहाँ जाय? पठानिन इसी वक्त दादा के पास जायगी। कितनी भयंकर स्थिति होगी! कैसा कुहराम मचेगा? कोई धर्म के नाम को रोयेगा, कोई मर्यादा के नाम को रोयेगा। दगा, फरेब, जाल, विश्वासघात, हराम की कमाई, सब मुआफ़ हो सकती है। नहीं, उसकी सराहना होती है। ऐसे महानुभाव समाज के मुखिया बने हुए हैं। वेश्यागामियों और व्यभिचारियों के आगे लोग माथा टेकते हैं; लेकिन शुद्ध हृदय और निष्कपट भाव से प्रेम करना निन्द्य है, अक्षम्य है। नहीं, अमर घर नहीं जा सकता। घर का द्वार उसके लिये बन्द है। और वह घर था कब ! केवल भोजन और विश्राम का स्थान था। उससे किसे प्रेम है?
वह एक क्षण के लिए ठिठक गया। सकीना उसके साथ चलने को तैयार है, तो क्यों न साथ ले ले। फिर लोग जी भरकर रोयें, सर पीटें और कोसें। आखिर यही तो वह चाहता था; लेकिन पहले दूर से जो पहाड़ी टीला सा नजर आता था, अब वह सामने देखकर उस पर चढ़ने की हिम्मत न होती थी। देश भर में हाहाकार मचेगा। एक म्युनिस्पल कमिश्नर एक मुसलमान लड़की को लेकर भाग गया। हरेक जबान पर यही चर्चा होगी। दादा शायद जहर खा लें। विरोधियों को तालियाँ पीटने का अवसर मिल जायगा। उसे
१३० | कर्मभूमि |