उसने उधर से मुँह फेर लिया, जैसे उसे कै हो जायगी। मुँह फेर लेने पर भी वही दृश्य उसकी आँखों में फिरने लगा। इस सत्य को वह कैसे भूल जाये कि उससे पचास कदम पर मुर्दा गाय की बोटियाँ की जा रही हैं। वह उठकर गंगा की ओर भागा।
गूदड़ ने उसे गंगा की ओर जाते देखकर चिन्तित भाव से कहा--वह तो सचमुच गंगा की ओर भागे जा रहे हैं। बड़ा सनकी आदमी है। कहीं डूब-डाब न जाय।
पयाग बोला--तुम अपना काम करो, कोई डबे-डाबेगा नहीं। किसी को जान इतनी भारी नहीं होती।
मुन्नी ने उसकी ओर कोप-दृष्टि से देखा--जान उन्हें प्यारी होती है, जो नीच हैं और नीच बने रहना चाहते हैं। जिसमें लाज है, जो किसी के सामने सिर नहीं नीचा करना चाहता, वह ऐसी बात पर जान भी दे सकता है।
पयाग ने ताना मारा--उसका बड़ा पच्छ कर रही हो भाभी, सगाई की ठहर गयी है क्या?
मुन्नी ने आहत कंठ से कहा--दादा, तुम सुन रहे हो इनकी बातें और मुँह नहीं खोलते। उनसे सगाई ही कर लूँगी तो क्या तुम्हारी हँसी हो जायगी? और जब मेरे मन में वह बात आ जायगी, तो कोई रोक भी न सकेगा। अब इसी बात पर मैं देखती हूँ, कि कैसे घर में सिकार जाता है। पहले मेरी गर्दन पर गँड़ासा चलेगा।
मुन्नी बीच में घुसकर गाय के पास बैठ गयी और ललकार कर बोली--अब जिसे गँडा़सा चलाना हो चलाये, मैं बैठी हूँ।
पयाग ने कातर भाव से कहा--हत्या के बल खेती खाती हो और क्या।
मुन्नी बोली--तुम्ही जैसों ने बिरादरी को इतना बदनाम कर दिया है। उस पर कोई समझाता है तो लड़ने को तैयार होते हो।
गूदड़ चौधरी गहरे विचार में डूबे खड़े थे। दुनिया में हवा किस तरफ़ चल रही है, उसकी भी उन्हें कुछ खबर थी। कई बार इस विषय पर अमरनाथ बातचीत कर चुके थे। गम्भीर भाव से बोले--भाइयो, यहाँ गाँव के सब आदमी जमा है। बताओ अब क्या सलाह है?