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पृष्ठ:कर्मभूमि.pdf/२५८

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लाला धनीराम को खाँसी आ गयी। जरा देर के बाद वह फिर बोले-- मैं कहता हूँ, तुम कुछ सिङी तो नहीं हो गये हो? व्यवसाय में सफलता पा जाने ही से किसी का जीवन सफल नहीं हो जाता। समझ गये? सफल मनुष्य वह है, जो दूसरों से अपना काम भी निकाले और उन पर एहसान भी रखे। शेखी मारना सफलता की दलील नहीं, ओछेपन की दलील है। वह मेरे पास आती, तो यहाँ से प्रसन्न होकर जाती और उसकी सहायता बड़े काम की वस्तु है। नगर में उसका कितना सम्मान है, शायद तुम्हें इसकी खबर नहीं। वह अगर तुम्हें नुकसान पहुँचाना चाहे, तो एक दिन में तबाह कर सकती है। और वह तुम्हें तबाह करके छोड़ेगी। मेरी बात गिरह बाँध लो। वह एक ही जिद्दीन औरत है। जिसने पति की परवाह न की, अपने प्राणों की परवाह न की... न जाने तुम्हें कब अक्ल आयी।

लाला धनीराम को खाँसी का दौरा आ गया। मनीराम ने दौड़कर उन्हें संँभाला और उनकी पीठ सहलाने लगा। एक मिनट के बाद लालाजी को साँस आई।

मनीराम ने चिन्तित स्वर में कहा-इस डाक्टर की दवा से आपको कोई फायदा नहीं हो रहा है। कविराज को क्यों न बुला लिया जाय। में उन्हें तार दिये देता हूँ।

धनीराम ने लम्बी साँस खींचकर कहा-अच्छा तो हूँगा बेटा, मैं किसी साधु की चुटकी भर राख ही से। हाँ, यह तमाशा चाहे करलो, और यह तमाशा बुरा नहीं रहा। थोड़े-से रुपये ऐसे तमाशों में खर्च कर देने का में विरोध नहीं करता; लेकिन इस वक्त के लिए इतना बहुत है। कल डाक्टर साहब से कह दूंँगा, मुझे बहुत फायदा है, आप तशरीफ़ ले जाँय।

मनीराम ने डरते-डरते पूछा--कहिए तो मैं सुखदा देवी के पास जाऊँ?

धनीराम ने गर्व से कहा-नहीं, में तुम्हारा अपमान करना नहीं चाहता। जरा मुझे देखना है कि उसकी आत्मा कितनी उदार है। मैंने कितनी ही बार हानियां उठायीं; पर किसी के सामने नीचा नहीं बना। समरकान्त को मैंने देखा। वह लाख बुरा हो पर दिल का साफ़ है। दया और धर्म को कभी नहीं छोड़ता। अब उसकी बहू की परीक्षा लेनी है।

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कर्मभूमि