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पृष्ठ:कर्मभूमि.pdf/३४८

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लिया और एक ने हंटर ऊपर उठाया ही था कि यकायक चौंक पड़ा और बोला--अरे! आप है सेठजी! आप यहाँ कहाँ?

सेठजी ने सलीम को पहचान कर कहा--हाँ-हाँ, चला दो हंटर, रुक क्यों गये? अपनी कारगुज़ारी दिखाने का ऐसा मौका फिर कहाँ मिलेगा। हाकिम होकर अगर ग़रीबों पर हंटर न चलाया, तो हाकिमी किस काम की!

सलीम लज्जित हो गया---आप इन लौंडों की शरारत देख रहे हैं, फिर भी मुझी को क़सूरवार ठहराते हैं। उसने ऐसा पत्थर मारा कि इन दारोगा़जी की पगड़ी गिर गयी। ख़ैरियत हुई कि आँख में न लगा।

समरकान्त आवेश में औचित्य को भूलकर बोले---ठीक तो है, जब उस लौंडे ने पत्थर चलाया, जो अभी नादान है, तो फिर हमारे हाकिम साहब जो विद्या के सागर हैं, क्या हंटर भी न चलायें! कह दो दोनों सवार पेड़ पर चढ़ जायँ, लौंडे को ढकेल दें, नीचे गिर पड़े। मर जायगा, तो क्या हुआ, हाकिम से बेअदबी करने की सजा तो पा जायगा!

सलीम ने सफाई दी---आप तो अभी आये हैं, आपको क्या खबर यहाँ के लोग कितने मुफ़सिद हैं। एक बुढ़िया ने मेरे मुँह पर थूक दिया, मैंने जब्त किया, वरना सारा गाँव जेल में होता।

समरकान्त यह बमगोला खाकर भी परास्त न हुए---तुम्हारे ज़ब्त की बानगी देखे आ रहा हूँ बेटा, अब मुँह न खुलवाओ। वह अगर जाहिल बेसमझ औरत थी, तो तुम्हीं ने आलिम-फ़ाजिल होकर कौन-सी शराफ़त की? उसकी सारी देह लहू-लुहान हो रही है, शायद बचेगी भी नहीं। कितने आदमियों के अंग-भंग हुए? सब तुम्हारे नाम को दुआएँ दे रहे हैं। अगर उनसे रुपये न वसूल होते थे, तो बेदखल कर सकते थे, उनकी फ़सल कुर्क कर सकते थे। मार-पीट का कानून कहाँ से निकला।

'बेदखली से क्या नतीजा, ज़मीन का यहाँ कौन खरीदार है? आख़िर सरकारी रक़म कैसे वसूल की जाय?'

'तो मार डालो सारे गाँव को, देखो कितने रुपये वसूल होते हैं! तुमसे मुझे ऐसी आशा न थी; मगर शायद हुकूमत में कुछ नशा होता है।'

'आपने अभी इन लोगों की बदमाशी नहीं देखी। मेरे साथ आइए, तो मैं सारी दास्तानं सुनाऊँ। आप इस वक्त आ कहाँ से रहे हैं?'

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कर्मभूमि