मुहलत न मिलेगी। मैं रात को मीठी नींद सोऊँगा। तुम्हें रातें जागकर काटनी पड़ेंगी। जान-जोखिम भी तो है। इस चक्की में क्या रक्खा है। यह काम तो गधा भी कर सकता है, कल भी कर सकती है; लेकिन जो काम तुम करोगे वह बिरले ही कर सकते हैं।
सूर्यास्त हो रहा था। काले खाँ ने अपने पूरे गेहूँ पीस डाले थे और दूसरे क़ैदियों के पास जा-जाकर देख रहा था, किसका कितना काम बाक़ी है। कई कैदियों के गेहूँ अभी समाप्त नहीं हुए थे। जेल कर्मचारी आटा तौलने आ रहा होगा। इन बेचारों पर आफ़त आ जायगी, मार पड़ने लगेगी। काले खाँ ने एक-एक चक्की के पास जाकर क़ैदियों की मदद करनी शरू की। उसकी फुरती और मेहनत पर लोगों को विस्मय होता था। आध घण्टे में उसने फिसड्डियों की कमी पूरी कर दी। अमर अपनी चक्की के पास खड़ा इस सेवा के पुतले को श्रद्धा-भरी आँखों से देख रहा था, मानों दिव्य दर्शन कर रहा हो।
काले खाँ इधर फुरसत पाकर नमाज़ पढ़ने लगा। वहीं बरामदे में उसने वजू किया, अपना कम्बल ज़मीन पर बिछा दिया और नमाज़ शुरू की। उसी वक्त जेलर साहब चार वार्डरों के साथ आटा तुलवाने आ पहुँचे। कै़दियों ने अपना-अपना आटा बोरियों में भरा ओर तराजू के पास आकर खड़े हो गये। आटा तुलने लगा।
जेलर ने अमर से पूछा---तुम्हारा साथी कहाँ गया?
अमर ने बतलाया, नमाज पढ़ रहा है।
'उसे बुलाओ। पहले आटा तुलवा ले, फिर नमाज पढ़े। बड़ा नमाज की दुम बना है। कहाँ गया है नमाज़ पढ़ने?'
अमर ने शेड के पीछे की तरफ इशारा करके कहा---उन्हें नमाज़ पढ़ने दें, आप आटा तौल लें।
जेलर यह कब देख सकता था, कोई क़ैदी उस वक्त नमाज़ पढ़ने जाय जब जेल के साक्षात् प्रभु पधारे हैं। शेड के पीछे जाकर बोले---अबे ओ नमाजी के बच्चे, आटा क्यों नहीं तुलवाता? बचा, गेहूँ चबा गये हो तो नमाज़ का बहाना करने लगे। चल चटपट, वरना मारे हंटरों के चमडी उधेड़ लूँगा।
काले खाँ दूसरी ही दुनिया में था।