के साथ शान्ति-भंग की ओर। चित्त की उस दशा में, जो इन ताबड़तोड़ गिरफ्तारियों से शान्ति-पथ-विमुख हो रहा था, बहुत संभव था कि वे पुलिस पर पत्थर फेंकने लगते, या बाजार लूटने पर आमादा हो जाते। उसी वक्त नैना उनके सामने जाकर खड़ी हो गयी। वह अपनी बग्घी पर सैर करने निकली थी। रास्ते में उसने लाला समरकान्त और रेणुका देवी के पकड़े जाने की खबर सुनी। उसने तुरन्त कोचवान को इस मैदान की ओर चलने को कहा और दौड़ी हुई चली आ रही थी। अब तक उसने अपने पति और ससुर की मर्यादा का पालन किया था। अपनी ओर से कोई ऐसा काम न करना चाहती थी कि ससुरालवालों का दिल दुखे, या उनके असंतोष का कारण हो; लेकिन यह खबर पाकर वह संयत न रह सकी। मनीराम जामे से बाहर हो जायँगे, लाला धनीराम छाती पीटने लगेंगे, उसे ग़म नहीं। कोई उसे रोक ले, तो वह कदाचित् आत्म-हत्या कर बैठे। वह स्वभाव से ही लज्जाशील थी। घर के एकान्त में बैठकर वह चाहे भूखों मर जाती, लेकिन बाहर निकलकर किसी से सवाल करना उसके लिए असाध्य था। रोज़ जलसे होते थे। लेकिन उसे कभी कुछ भाषण करने का साहस नहीं हुआ। यह नहीं कि उसके पास विचारों का अभाव था, अथवा वह अपने विचारों को व्यक्त न कर सकती थी। नहीं, केवल इसलिए कि जनता के सामने खड़े होने में उसे संकोच होता था। या यों कहो कि भीतर की पुकार कभी इतनी प्रबल न हुई कि मोह और आलस्य के बन्धनों को तोड़ देती। बाज़ ऐसे जानवर भी होते हैं, जिनमें एक विशेष आसन होता है। उन्हें आप मार डालिए पर आगे कदम न उठायेंगे। लेकिन उस मार्मिक स्थान पर उँगली रखते ही उनमें एक नया उत्साह, एक नया जीवन चमक उठता है। लाला समरकान्त की गिरफ्तारी ने नैना के हृदय में उसी मर्मस्थल को स्पर्श कर लिया। वह जीवन में पहली बार जनता के सामने खड़ी हुई, निश्शंक, निश्चल, एक नयी प्रतिभा, एक नयी प्रांजलता से आभासित। पूर्णिमा के रजत प्रकाश में ईंटों के टीले पर खड़ी जब उसने अपने कोमल किन्तु गहरे कंठ-स्वर से जनता को संबोधन किया, तो जैसे सारी प्रकृति नि:स्तब्ध हो गयी।
'सज्जनो, मैं लाला समरकान्त की बेटी और लाला धनीराम की बहू