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कलम, तलवार और त्याग
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हम लकड़ी काटने और पानी भरने के सिवा और किसी काम के न रह जायेंगे।

कमीशन के सामने गवाही देने के बाद मिस्टर गोखले ने लण्डन और इंगलैंड के दूसरे जिलो की भ्रमण आरभ किया जिसमें अपनी जोरदार वक्तृताओं से ब्रिटिश जनता के हृदय में भारत के प्रति सहानुभूति उत्पन्न करे और देश की स्थिति के विषय में उनकी शोचनीय उपेक्षा तथा अनभिज्ञता को दूर करें। आपके इन सत्प्रयत्नों की दाद ब्रिटिश जनता ने दिल खोलकर की। आपके भाषणों के साथ बड़ी दिलचस्पी दिखाई गई। सब ओर से साधुवाद की वर्षा होने लगी , बधाई के पत्र आने लगे और कुछ ही दिनों में सब पर आपके वक्तृत्व और विद्वत्ता का सिक्का जम गया। पर इस समय जब आप कृतकार्य होकर भारत लौटनेवाले थे, एक अनिष्ट घटना घटित हुई जिसके कारण कुछ दिनों तक आपको अपने अनभिज्ञ नोकझे देशवासियों में लांछित होना, उनके निष्ठुर व्यंग्य-आक्षेपों का निशाना बनना पड़ा। उन दिनों बम्बई के शासन की बागडोर लार्ड डस्ट के हाथों में थी। लेग के प्रतिबंध के लिए अपने बड़े कड़े नियम प्रचारित किये थे और उनको काम में लानेकोले अहलकार उन पर हाशिया चढ़ाकर जनता पर अवर्णनीय अत्याचार करते। सो जब पूने में इस महामारी का प्रकोप हुआ और सरकारी कर्मचारी उसके प्रतिबंध की धुन में अँघेर मचाने लगे तो जनता भड़क उठी। शिशित जनों को भी अधिकारियों का यह हस्तक्षेप अनुचित जान पड़ा। उन्होंने इसका जोरों से विरोध किया। समाचार पत्रों ने भी उनका साथ दिय। पर नौकर साही की नीद्रा न टूटी। अन्त में दो अंग्रेजों--रेंड और आयस्टे-को, जो जनता की भी निगाह में इन सारी ज्यादतियों के लिए कारणभूत थे, सरकार की करनी और जनता के क्रोध का फल भुगतना पड़ा।

इन दो अंग्रेजों के क़तल से अंग्रेज अधिकारियों के कान खड़े हो गये। उनको संदेह हुआ कि यह उपद्रव शिक्षित-वर्ग को उठाया हुआ