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गेरीबाल्डी
 


दुश्मन को सामने देखा और टूट पड़ा। इसमें वह तनिक भी आगा-पीछा न करता। उसके आक्रमण में कुछ ऐसी बल होता था कि प्रायः सभी अवसरों पर उसकी यह युक्ति सफल हो जाती थी। अपने से दसगुनी सेना को, जो हरबे-हथियार से लैस होती थी, कितनी ही बार उसने अपने नौसिखिये, अनुभवहीन रंगरूटों से हरा दिया। इसका कारण यह था कि उसके दल का एक-एक आदमी राष्ट्रीयता के नशे में चूर होता था।

मिलान की जनता ने आस्ट्रिया का जोरों से विरोध किया था, इसलिए वह खास तौर से आस्ट्रिया के कोप का भाजन बना हुआ था। गैरीबाल्डी उसकी रक्षा के यत्न में लगा हुआ था कि रोम से डरावनी खबरें आईं। मेजिनी भी स्विट्जरलैंड से स्वदेश को लौट रहा था। मिलान मैं दोनों देशभक्तों का भरत-मिलाप' हुआ और दोनों साथ-साथ रोम की ओर चले कि वहाँ पहुँचफ़र पार्लमेंट का विधान बनायें और देश को अव्यवस्था और अराजकता की मुसी- बतों से बचायें। रोम पर उस समय सब ओर से विपत्तियाँ टूट रही थीं। राष्ट्रीय सरकार के पाँव अभी जमने न पाये थे कि एक ओर से नेपुल्स के बादशाह और दूसरी ओर से बोनापार्ट की सेनाएँ उसका गला घोंटने के लिए आ पहुँचीं। इसके सिवा पोप के जासूसों और पाद- रियों ने जनसाधारण के अंध-विश्वास का लाभ उठाकर राष्ट्रीय सरकार की ओर से उन्हें भड़काना शुरू कर दिया। गेरीववबाल्डी इन सारी विरोधी शक्तियों का सामना करने के लिए तैयार था। पहले नेपुल्स के बादशाह से उसकी मुठभेड़ हुई। उसके साथि १५ हजार पक्के, अनेक लड़ाइयाँ देखे हुए सिपाही थे। पर इस बड़ी सेना को उसने पलक मारते छिन्न-भिन्न कर दिया और बहुत दूर तक पीछा करता चला गया। उसका विचार था कि नेपुल्स पर चढ़ जाय, पर फ्रांसीसियों के आ उपहुँचने की खबर सुनकर लौट पड़ा, फ्रांसीसी सिपाही जो अफ्रीका के मैदानो से ताजा-ताज़ा लौटे थे, बड़ी दृढ़ता से लड़े और क़रीब था कि शहर में घुस पदें कि इतने में गेरीबाल्डी अपने एक हजार