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गेरीबाल्डी
 


मेल करके कहीं हमारे मुल्क पर हमला न कर बैठे, इस विजय का समाचार मिला तो गेरीबाल्डी से अनुरोध किया कि अब आप नेपुल्स सरकार को और ज्यादा हैरान न करें जिसमें वह संयुक्त इटली का अंग बन सके। पर गेरीबाल्डी ने अपनी राय न बदली। पहले तो उसने सिसली से शाही फौज को निकाला, फिर इटली के दक्षिणी समुद्र तट पर उतर पड़ा। इसकी खबर पाते ही चारों ओर से जनता उसके दल में सम्मिलित होने के लिए टूटने लगी। मानो वह इसी की प्रतीक्षा में थी। अधिकतर स्थानों में नई अस्थायी सरकारें स्थापित हो गई और. ३१ अगस्त को जनता ने उभय सिसली के अधिनायक' (डिक्टेटर) की उपाधि जो नेपुल्स-नरेश को प्राप्त थी, गेरीबाल्डी को प्रदान कर दी। फ्रांसिस के होश उड़ गये। गेरीबाल्डी के विरुद्ध युद्ध घोषणा कर दी। पर तीन लड़ाइयों में से एक को भी परिणाम उसके लिए अच्छा न हुआ। ८ सितम्बर को गेरीबाल्डी नेपुल्स में दाखिल हुआ। इसके दूसरे दिन विक्टर इमानुएल वहाँ का बादशाह घोषित किया गया और सारे राज्य की प्रजा की सहमति से सिसली और नेपुल्स दोनों पेडमांट के राज्य में सम्मिलित कर दिये गये।

राष्ट्र की इस महत्त्वपूर्ण सेवा के बाद जो उसके जीवन को आधा कार्य कहा जा सकता है, गेरीबाल्डी ने अपनी सेना को तोड़ दिया और अपने जज़ीरे को लौट आया। अब केवल रोम और वेनिस वह स्थान थे, जो अभी कुछ पोप और अस्ट्रिया के पंजे में कैंसे हुए थे। दो साल तक वह अपने शान्तिकुटीर में बैठा हुआ इन उत्पीड़ित लोग में स्वाधीनता के भाव भरता रहा। अंत में उसकी कोशिशों का जादू चल गया और वेनिसवाले भी स्वाधीनता-प्राप्ति के प्रयास के लिए तैयार हो गये। अब क्या देर थी। गेरीबाल्डी तुरत चुने हुए वीरों की छोटी-सी सेना लेकर चल खड़ा हुआ। पर विक्टर इमानुएल को उसकी यह धृष्टता बुरी लगीं। प्रधान मन्त्री केयूर के मर जाने से इसके मन्त्रियों में कोई धीर साहसी पुरुष न रह गया था। सब के सब डर गये कि कहीं आस्ट्रियावाले हमारे पीछे न पड़ जायँ। इसलिए