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बद्रुद्दीन तैयबजी

हिन्दुस्तान में मुसलमानों का प्रवेश दो रास्तों से हुआ। एक तो बिलोचिस्तान और सिन्ध की ओर से, दूसरा उत्तर-पश्चिम के पहाड़ी भाग से। सिंध की ओर से जो मुसलमान आये वे अरब जाति के थे और व्यापार करने आये थे। पश्चिमोत्तर दिशा से आनेवाले अफ़ग़ान या पठान जाति के थे और देश-विजय के उत्साह से प्रेरित होकर आये थे। अस्तु, बंबई प्रान्त में अधिकतर अरब जाति के मुसलमान आदि हैं जिन्हें अपने व्यपार' संबन्ध के कारण भारतवासियों के साथ बराबरी का नाता जोड़ने में कोई रुकावट न थी। पठान विजेता थे इसलिए इस देश के निवासियों के साथ अधिक हिल-मिलकर रहना पसन्द न करते थे। बद्रुद्दीन तैयबजी भी एक प्रतिष्ठित अरब कुल के सपूत थे जो बहुत अरसे से बंबई में आबाद था। उनके पुरखे तिजारत के सिलसिले में हिन्दुस्तान आये थे और बद्रुद्दीन के पिता तैयबजी भाई मियाँ एक सफल व्यापारी थे। यद्यपि वह धर्मनिष्ठ मुसलमान थे और उस जमाने में बोहरों में अंग्रेजी पढ्ना कुफ़ समझा जाता था, पर ऐसे निरर्थक बन्धन को मानकर अपने होनहार लड़के को अंग्रेजी शिक्षा से वंचित रखना उन्होंने उचित न समझा, जो उनके दूरदर्शी और स्वाधीन-चैती होने का प्रमाण है। बद्रुद्दीन की आरंभिक फारसी और अरबी की पढ़ाई तो अरबी मदरसे में हुई, पर ज्यों ही इन भाषाओं में कुछ योग्यता हो गई, वह एलफिन्स्टन कालिज में भरती कर दिये गये, और सोलह साल की उम्र में शिक्षा-प्राप्ति के लिए इंगलैण्ड भेज दिये गये, जहाँ से १८६७ ई॰ में बैरिस्टर होकर हिन्दुस्तान लौटे। यद्यपि उनका स्वास्थ्य खराब था