जाती। मनुष्य भी अपनी कलाओं के आधार पर इसी खोज में रत होता है। मनुष्य की कला इसी खोज का एक माध्यम है। कला अन्त नहीं है—अन्त तो है गहराई—कला एक सहारा है, एक तरीका है वहाँ तक पहुँचने का। कला कला के लिए नहीं है। कला लक्ष्य नहीं है। कला साधन है, उस खोज का।
कला की महानता इसमें नहीं कि वह क्या-क्या बनाती है—उसे तो खोज करनी है—अपने लक्ष्य की। नये रास्ते बनाने हैं, वहाँ तक पहुँचने के—वैसे ही जैसे सरिता बनाती है रास्ते, सागर तक पहुँचने के।
सरिता कभी मुड़कर नहीं देखती कि उसने पीछे क्या क्या बनाया है। वह तो बहती जाती है अपने लक्ष्य की खोज में। मनुष्य की कला का रूप क्या है, इससे कलाकार को सरोकार नहीं—वह तो अपनी कला के द्वारा कुछ खोजता है—वही जो सरिता खोजती है। किसने कितनी गहराई प्राप्त कर ली, यही उसकी प्रगति की सफलता का प्रमाण है।
कला भाव-प्रकाशन है, इससे कलाकारों को कोई सरोकार नहीं। कला भले ही भाव-प्रकाशन करे, परन्तु कलाकार के लिए इसका क्या महत्त्व? महत्त्व तो है खोज के परिणामों का—गहराई का—अन्तिम लक्ष्य का।
कला भाव-प्रकाशन नहीं—खोज का रूप है। कला लक्ष्य नहीं, लक्ष्य की प्राप्ति का तरीका है।
कला मनुष्य की जीवन-यात्रा की सरिता है, जो उसके सम्मुख प्रगति के रास्ते खोजती चलती है।
कला एक खोज है।