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पृष्ठ:कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ.djvu/१३

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कलाकार की कला

समुद्र के किनारे तथा नदियों के तट पर सी और घोंघे पाये जाते हैं । ये सीप और बोंघ अनेकों रूप, रंग तथा प्राकार के होते हैं और देखने में बहुत सुन्दर होते हैं । बहुत से लोग इनमें से अच्छे-अच्छे नमूने लाकर अपने घरों में सजावट के लिए रखते है और बहुत से लोग शौकिया तौर पर विभिन्न प्रकार के सीप तथा घोंघों का संग्रह करते हैं ।

सीप तथा घोंघे पानी में रहनेवाले एक प्रकार के जन्तुओं के बाहरी शरीर का ढाँचा होता है, जो पत्थर तथा हड्डी की तरह मजबूत होता है । इसी के अन्दर वे जीव, जब तक जीवित रहते हैं, रहा करते हैं । मरने के बाद यह सीप-घोंघोंवाला उनका शरीर पानी के माथ बहाव से नदी तट पर आ जाता है। उसके अन्दर के जीव सूखकर, मिट्टी होकर, साफ हो जाते हैं ।

इन सीपों तथा घोंघों को जब हम समुद्र के किनारे तथा नदी तट पर पाते हैं तो इनके अन्दर के जीव नहीं दिखाई पड़ते और हम उन्हें उनके अन्दर न देखने के कारण उन सीप तथा घोंघों को ही वह जीव समझते हैं ।

परन्तु ऐसा नहीं है । ये सीप तथा घोंघे उन जीवों के बाहरी शरीर या रूप के अवशष मात्र हैं, जिनके अन्दर रहकर उन्होंने जीवन-निर्वाह किया है ।

इसी प्रकार कलाकार तथा उसकी कला है । कलाकार उस जीव के समान है जो सीप या घोंघे में था और उसकी कला उस घोंघे तथा सीप के समान है । अर्थात् जिस प्रकार घोंघा या सीप पानी के जन्तुओं का बाहरी रूप है, उसी प्रकार कलाकार की कला । चित्रकार के चित्र उस कलाकार के अवशेष हैं, जिनके अनुरूप उसने अपना जीवन निर्वाह किया है । जिस प्रकार सीप तथा घोंघे का जीव मरकर अपना अवशेष छोड़ जाता है, उसी प्रकार कलाकार के चित्र । कलाकार के लिए उसके चित्र कोई तात्पर्य नहीं रखते । वह तो उसके जीवन का एक बाहरी रूप है । जिस प्रकार सीप का जीव मरने के बाद अपना बाहरी शरीर सीप या घोंघा छोड़कर चला जाता है, और हम उसे उठाकर अपनी