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चित्र-कला को तीन मुख्य प्रवृत्तियाँ

होगी। ऐसे योगी संसार में बहुत कम होते हैं । इसलिए यदि यह कहा जाय कि सूक्ष्म चित्रकला में प्रविष्ट होना प्रत्येक मनुष्य या कलाकार के लिए असम्भव है तो मिथ्या न होगा। बीसवीं सदी में पिकासो की देखा-देखी यूरोप में इस कला के बहुत से अनुयायी हो गये हैं, शायद आवश्यकता से अधिक, परन्तु उन सभी की वही मानसिक स्थिति हो जैसी पिकासो की, ऐसा नहीं कहा जा सकता।

भारत में इस सूक्ष्म चित्रकला में विश्वास करने वाले कुछ इने-गिने चित्रकार ही है। इस दिशा में प्रयाग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रवीन्द्रनाथ देव तथा काशी हिन्दू विश्ववि- द्यालय के रामचन्द्र शुक्ल विशेषकर उल्लेखनीय है । इस प्रकार के कुछ चित्र स्वर्गीय डा० रवीन्द्रनाथ ठाकुर तथा गगेन्द्र नाथ ठाकुर ने भी बनाये हैं।