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कला और प्राधुनिक प्रवृत्तियां

पहला कारण तो यह है कि शायद इसके द्वारा मनुष्य के सभी भाव सरलता से व्यक्त नहीं हो पाते थे--मुख्यतः सूक्ष्म भाव । इससे तो वही भाव सरलतासे व्यक्त किये जा सकते थे जिनको आँखों से भी देखा जा सकता था। सुगन्ध, वायु तथा कल्पना इत्यादि भाव, जिनका कोई निश्चित-सा दीख पड़नेवाला रूप नहीं है, पिक्टोग्राफ में कैसे व्यक्त किये जा सकते हैं ? आदि-काल में जब मनुष्य और उसका वातावरण, उसकी कल्पनाएँ सूक्ष्म थीं, केवल आस-पास की नित्य प्रति काम आनेवाली वस्तुएँ ही उसके सम्मुख थीं-वह पिक्टोग्राफ के द्वारा अपने इन भावों को व्यक्त कर लेता था, परन्तु जैसे-जैसे मनुष्य के मस्तिष्क का विकास हुआ, उसकी भावनाएँ, समस्याएँ जटिल तथा सूक्ष्म होती गयीं, उनको पिक्टोग्राफ में व्यक्त करना कठिन हो गया। आज का युग तो इतना जटिल होता जा रहा है कि भाषा से भी सुगम ढंग निकालने की आवश्यकता पड़ रही है, और संकेत स्वरलिपि का भी अधिक प्रचार तथा प्रसार इसी लिए हो गया है। संकेत लिपि- प्रणाली का और भी सूक्ष्म रूप है ।

इसी प्रकार पहले की अपेक्षा आज की चित्रकला धीरे-धीरे सादगी तथा सूक्ष्मता की ओर वेग से बढ़ रही है।

उदाहरण--

स्वाभाविक सूक्ष्म की ओर

आदि निवासियों के "मस्तिष्क का अधिक विकास नहीं हो पाया था," इसलिए वे किसी वस्तु को चित्रित करने में उसे प्राकृतिक रूप नहीं दे पाते थे और उसे सूक्ष्म लाक्षणिक ढंग से ही व्यक्त कर पाते थे जैसे पेड़ (५), परन्तु धीरे-धीरे चित्रकला ने अति प्राकृतिक