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कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ

"टू डाइमेश्नल" थी अर्थात् चित्रमें केवल वस्तुओं की लम्बाई और चौड़ाई ही चित्रित हो पाती थी। चित्रकारों ने अपने चित्रों में चित्रित वस्तुओं की मूर्तिकला से तुलना की जिसमें उन्हें अपने चित्रों की वस्तुओं तथा आकारों में मोटाई तथा गहराई की कमी मालूम पड़ी। इसी को पूरा करना उत्तर प्राभासिक चित्रकार का मुख्य लक्ष्य रहा।

भारतवर्ष में भी इस प्रवृत्ति का प्रादुर्भाव हुआ, यद्यपि इस शैली के उच्च कोटि के चित्रकार एक भी दृष्टिगोचर नहीं होते। जार्ज कीट के कुछ चित्रों में यह प्रवृत्ति भली-भाँति आभासित होती है। सुधीर खास्तगीर की कला का तो यही आधार बन गया है।