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पृष्ठ:कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ.djvu/१५८

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वैज्ञानिक प्रवृत्ति

वाणी में विश्वविश्रुत अमर काव्यों की रचना करने लगीं। सरस्वती की सोयी हई वीणा भारत-सम्राटों की उँगलियों में झंकृत होने लगी। अनेक शिल्पी अजंता और एलोरा को निर्जीव शैल-कन्दरामों में छेनी और तूलिका के सहारे उस स्वर्ण-युग का इतिहास लिखने लगे। हमारी वेश-भूषा, चाल-ढाल, रहन-सहन सबका चित्रमय इतिहास लेकर वे पहाड़ियाँ अटल होकर खड़ी रहीं और उन कठोर दस्युओं के हाथों में न पड़ने पायीं जिन्होंने अनेक बार भारत के अर्थ-गौरव के साथ उसके कला-वैभव पर भी छापा मारा है।

अजन्ता के चित्र तत्कालीन समाज के ही साक्षी नहीं है, वरन् भारतीयों की कलाप्रियता के भी द्योतक हैं। ब्रह्मा की कला उनके आगे पानी भरती है। उँगलियों की अगणित मुद्राएँ, मनुष्य-शरीर की कोमल भाव-भंगिमाएँ अद्भुत और असंख्य केशपाश, पुरुषों और स्त्रियों के अगणित हाव-भाव, शोभा के अनन्त साधन, राजसी ऐश्वर्य के अपरिमित ठाट-बाट—यों कहिए कि अजन्ता की चित्रशाला गुप्त साम्राज्य के अखिल सौन्दर्य, निस्सीम विलास तथा अपार गुणराशि का सजीव मूर्तिमान् कौतुकालय है। रत्नाकर की सम्पूर्ण रत्नराशि उसके आगे झख मारती है। कमल की रमणीयता उसके सौन्दर्य का लोहा मानती है। अजन्ता की गुफाओं को देखकर एकबारगी प्राचीन गौरव मस्तिष्क में घूम जाता है और यह समझने में तनिक भी विलम्ब नहीं लगता कि अब हम कितने तुच्छ हैं, दीन है, कंगाल हैं।

इन्हीं कन्दराओं में से सत्रह संख्यक कन्दरा की एक भीत पर किसी कुशल चित्रकार की सिद्ध तूलिका का ललिततम विन्यास सहसा नेत्रों को आकृष्ट कर लेता है। इस विरहाकुल राजकुमारी के चित्र को विदेशी कला-शास्त्रियों ने भूल से मरणासन्न राजकन्या की संज्ञा देते हुए कहा है कि राजकन्या की झुकी हुई आँखों में सांसारिक दृष्टि समाप्त हो चकी है, प्यार भरी अन्तिम विदा के रूप में उसकी उँगलियाँ पास बैठी हुई कन्या के हाथ पर झूल गयी है और वह कन्या आशंका, अविश्वास तथा जिज्ञासा के मिश्रित भावों से व्यग्र होकर व्यर्थ ही उस हृदय-विदारक विपत्ति का फल जानने को उत्सुक है। अन्तिम बार झुके हुए अंग मृत्यु की विजय की घोषणा कर देते हैं और वह अवर्णनीय दुःख चारों ओर बैठी हुई सेविकाओं के मुखों पर व्यक्त भावों से और भी स्पष्ट होकर प्रतिविम्बित होने लगता है।

इस चित्र के विषय में ग्रिफिथ महोदय ने ठीक ही कहा है कि—"करुणा और मनोवेग तथा अपनी कथा कहने की निर्धान्त शैली की दृष्टि से यह चित्र कला के इतिहास में अप्रतिम है। सम्भव है फ्लोरेटाइन वाले इसमें सुन्दरतर रेखाएँ डाल देते और वेनिसवाले भव्यतर रंग भर देते, किन्तु उनमें से कोई भी इससे सुन्दर भाव नहीं भर सकता था।"