समर्थ होगी। परन्तु यह तभी संभव हो सकता है, जब हम उसके अन्वेषण का एक निश्चित मार्ग स्थिर कर लें। चित्रकला के मुख्य अंग हैं रूप, रंग, रेखा और इन सब का संयोजन। इनमें प्रत्येक का भिन्न-भिन्न प्रभाव पड़ता है। लाल रंग का उष्ण प्रभाव पड़ता है, तो हरे रंग का शीतल। पड़ी रेखा मन को शान्ति तथा निश्चलता प्रदान करती है, तो खड़ी और तिरछी रेखाएँ मन को ऊपर की ओर अग्रसर करती और चंचलता प्रदान करती हैं। लघु रूपों को देखकर वस्तुओं की दुर्बलता प्रतीत होती है। बड़े रूपों तथा बृहद् आकारों को देखकर दृढ़ता, शक्ति तथा महानता का बोध होता है, जैसे कि हिमालय पर्वत को देखकर। सरल संयोजन का मन पर सीधा तथा सुहावना प्रभाव होता है तो जटिल संयोजन मन को जटिलता (उलझन) में डाल देता है। नदी को देख कर चंचलता, ओछापन प्रतीत होता है, तो सागर को देखकर गहराई और महानता। इसी प्रकार सृष्टि के प्रत्येक रूप का विभिन्न प्रभाव पड़ता है। इन्हीं प्रभावों को वैज्ञानिक तथा मनोवैज्ञानिक ढंग से खोज निकालना और उनका अपने चित्रों में उपयोग करना भावी चित्रकार के अनुसंधान तथा रचना का कार्य होगा। इसी को सत्य कहते हैं और कला में "सत्यं, शिवम्, सुन्दरम्" का तात्पर्य भी यही है। यही सृष्टि का आधार है, इसको खोज निकालना कलाकार का कर्तव्य है और इसके अनुसार सृष्टि करना उसका लक्ष्य है।
यहाँ अन्य वैज्ञानिक सिद्धान्तों का भी उल्लेख करना आवश्यक जान पड़ता है जिनसे हमारे कथन की पुष्टि होगी। इसमें संदेह नहीं कि चित्रकारों की सफलता वैज्ञानिक तथ्यों के मूल में है। संसार के अन्य विज्ञानों में आज इतना चमत्कार क्यों हैं? उदाहरण के लिए ज्योतिष-विज्ञान को लीजिए। ग्रह, नक्षत्र, तारों के विभिन्न रंगों के कारण उनके भिन्न-भिन्न प्रभाव आये दिन प्रकट होते जा रहे हैं। रंगों के प्रभाव में एक मनोवैज्ञानिक आधार छिपा है। रंगों का प्रभाव कितना व्यापक होता है, इसे हम विभिन्न रंगों की पानी से भरी बोतलों से जान सकते हैं। रंगीन बोतलों का यही जल कालान्तर में औषध बनकर कितने ही असाध्य रोगों से मुक्ति दिलाता है। क्या यह रंगों का प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं है? रंगों के प्रभाव की व्यापकता का अनुभव जड़ाऊ अँगूठी से भी सुगमतापूर्वक किया जा सकता है। उदाहरणार्थ नीलम की अँगूठी लीजिए। इसके रंगों का ही यह प्रभाव है कि इसके धारण करने से ग्रहों का शमन होता है।
रंगों के मनोवैज्ञानिक तथ्य का निरूपण एक मेल के दो कमरों से आसानी से हो सकता है। एक कमरा लाल और दूसरा हरे रंग का है। दोनों में तापक्रम समान है, फिर भी हरे कमरे में हम शीतलता और लाल कमरे में उष्णता का अनुभव करते हैं। हिम की शीतलता हम नेत्र से नहीं, अपितु स्पर्शमात्र से करते हैं। इससे सिद्ध होता है कि रंगों के