स्वप्निल प्रवृत्ति
आज का मनोवैज्ञानिक युग स्वप्न सम्बन्धी अन्वेषणों में सतत् प्रयत्नशील है। पाश्चात्य विद्वान् फ्रायड तथा युंग ने स्वप्न की बड़ी महत्ता बतायी है और उसका खूब प्रचार किया है। भारतवर्ष में भी सदियों से जीवन में स्वप्न का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। आधुनिक विद्वान् स्वप्न को समझाते हुए कहते हैं कि जाग्रत या चेतन अवस्था में जो कार्य हम नहीं कर पाते, उन सुप्त इच्छाओं को हम अपने स्वप्न में पूर्ण करते हैं। स्वप्न का एक ऐसा प्रदेश है जहाँ कोई सांसारिक या सामाजिक बन्धन नहीं होता; वहाँ हम पूरे स्वतन्त्र होते हैं। प्रत्येक आत्मा स्वतन्त्र होना चाहती है और जीवन में उसे स्वतंत्रता के स्थान पर परतंत्रता दृष्टिगोचर होती है। तब स्वप्न ही एक सहारा रह जाता है। वैसे तो कतिपय विद्वान् जीवन को भी स्वप्न समझते हैं, परन्तु जो स्वतंत्रता हमें स्वप्न में दृष्टिगोचर होती है वह जीवन में प्राप्त नहीं है। आधुनिक मनोवैज्ञानिक स्वप्न को भी जीवन के अन्तर्गत ही समझते हैं और स्वप्निल प्रदेश में भी जो कार्य हम करते हैं उसका पूरा उत्तरदायित्व हमारे उपर ही रहता है। वह कार्य भी हमारे अचेतन मस्तिष्क का ही है, और हमारा है।
आधुनिक चित्रकला में भी स्वप्न का यही स्थान है। परन्तु स्वप्निल चित्रकला का अर्थ यह नहीं कि हम सोये हुए अचेतन अवस्था में जो चित्रकला करें वही स्वप्निल चित्रकला होगी। स्वप्निल चित्रकला का तात्पर्य यह है कि जाग्रत अवस्था में भी चित्र निर्माण करते समय चित्रकार इतनी अधिक स्वतंत्रता का आभास करें जितना वह सोकर अचेतन अवस्था में स्वप्न में करता है, और इसी अवस्था में कला की रचना करे। आधुनिक चित्रकला की सबसे बड़ी विशेषता उसकी पूर्ण स्वतंत्रता ही है। स्वतंत्र होने की भावना चित्रकार में सबसे पहले होती है, क्योंकि मनुष्य की कल्पना पूर्ण स्वतंत्र है। कल्पना कला का प्राधार है और स्वप्न भी अचेतन अवस्था की कल्पना है। इसलिए जिस तरह चित्रकार को कल्पना प्रिय है, उसी भाँति स्वप्न की कल्पना भी।
प्राचीन काल में साहित्य में स्वप्न का बड़ा महत्त्व था। पुराणों तथा जातककथा-कहानियों में भी स्वप्न के ही ऊपर कल्पना रहती थी। चित्रकला में भी स्वप्न के चित्र मिलते