आधुनिक चित्रकार जब किसी प्रभावोत्पादक वस्तु या दृश्य को देखता है तो उसके मन में हिलोरें उठने लगती हैं। वह उस वस्तु या दृश्य के प्राकृतिक बाह्य रूप को भूल जाता है और उसी तरंग के आधार पर उस वस्तु का एक परिमार्जित रूप देखता है। यही परिमार्जित रूप उसकी चित्रकला में आ जाता है। यह उस बाह्य वस्तु या दृश्य का प्राकृतिक रूप नहीं होता, वस्तुतः चित्रकार ने उसे जिस रूप में देखा उसका प्रतीक होता है। ऐसा भी हो सकता है कि जो वस्तु उसकी इस तरंग का कारण हो, वह चित्र में बिलकुल गौण हो जाय या एक विकृत रूप में दूसरों को दिखाई दे। ऐसी स्थिति में यदि कोई उस रूप की उसके प्राकृतिक रूप से तुलना करे तो बिलकुल निरर्थक होगा। परन्तु कलाकार द्वारा निर्मित यह रूप एक सामाजिक रूप होगा, ऐसा भी कहना कठिन है। वहाँ दर्शक को उसी उमंग, तरंग या मनोवेग से उसका आनन्द लेना होगा जिन मनोवेगों की अन्तरर्दशाओं से होकर चित्रकार हमारे सामने आया है, और यह तभी हो सकता है जब दर्शक चित्रकार के साथ तथा उसके चित्र के साथ सहानुभूति रखे, उसके हृदय से एकता स्थापित करे। यदि हम ऐसा नहीं करते और केवल वस्तुओं के बाह्य प्राकृतिक रूप तक ही अपने को सीमित रखें तो हमारे लिए यह चित्र वही पहेली की पहेली बने रह जायेंगे।
उपर्युक्त कथन के अधार पर ही, आधुनिक चित्रकला की एक प्रबल शैली अग्रसर हो रही है और इसी को प्रात्म-अभिव्यंजनात्मक चित्रकला कहते हैं। आत्म-अभिव्यंजनात्मक चित्रकला प्रकृति के बाह्य रूप या इन्हीं रूपों पर आधारित किसी सूक्ष्म धारणा को चित्रित न कर चित्रकार के मनोभाव की अभिव्यक्ति करती है। यह शैली स्वभावतः व्यक्तिगत है और यह किसी समय या देश की परिधि में बाँधी नहीं जा सकती। इस प्रकार की चित्रकला अफ्रिका निवासियों की नीग्रो कला तथा प्राचीन प्रागैतिहासिक पाषाण-युग की भारतीय कला में भी पायी जाती है। मोहनजोदड़ो तथा हरप्पा की कला भी इसी प्रकार की थी। आधुनिक यूरोप में इस कला का आज अत्यधिक प्रचार है और फ्रांसीसी चित्रकार वान-गाग से इसका प्रारम्भ माना जाता है।
भारतीय आधुनिक कलाकारों में इस प्रकार की चित्रांकन प्रवृत्ति हमें सर्वप्रथम स्व० रवीन्द्रनाथ ठाकुर तथा स्व० गगनेन्द्रनाथ की कृतियों में दिखाई देती है। आज ऐसे अनेकों चित्रकार सामने आ गये हैं जिनके चित्रांकन की आधार भित्ति इन्हीं भावनाओं के मसाले से बनी है। इस दृष्टि से आधुनिक चित्रकारों में बेन्द्रे, हुसैन तथा राचशु के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं।