उन्हीं सिद्धान्तों पर अपनी कल्पना से नये रूपों को एक नये वातावरण के साथ अपने चित्र में स्थान देता है। प्रकृति के रूप उसकी कला के अंग नहीं होते, प्रत्युत उन्हीं के अध्ययन के आधार पर वह नव-निर्माण करता है।
इस प्रकार के काल्पनिक चित्रकार भी आधुनिक भारत में हैं, परन्तु अभी उनकी भावना परिपक्व नहीं हो पायी है। बंगाल के कल्याण सेन इस दिशा में प्रयत्नशील हैं। इनके काल्पनिक चित्रों में चित्रित सभी प्राकृतिक रूप परिवर्तित तथा परिमार्जित तो हैं, परन्तु प्राकृतिक हैं। इनकी "हाथियों की जल-क्रीड़ा" इसी प्रकार का काल्पनिक चित्र है। चित्र का सम्पूर्ण प्रबन्ध विलक्षण है और मुख्यतः पेड़-पौधों के रूप तो इनके बहुत ही मौलिक और निर्माणकारी हैं।
यूरोपीय चित्रकला में ब्लेक तथा रूसो के चित्र भी इसी प्रकार के काल्पनिक चित्र हैं। रूसो का "सँपेरा" और ब्लेक का "नरक के द्वार पर" उल्लेखनीय हैं।