छोटे से कागज या कैनवस पर वह जो भी रचना करे वह सत्य के सिद्धान्त पर निर्मित हो, जिस प्रकार सृष्टि में वस्तुएँ निर्मित होती हैं। प्रश्न हो सकता है कि आखिर सृष्टि का क्या सिद्धान्त है? प्रश्न मुश्किल है, चित्रकार भी इसी की खोज में है और निरन्तर लगा है। जो जितना खोज पाता है, उसी के आधार पर रचना करता जाता है। फिर भी सृष्टि के बारे में इतना तो सभी मानते हैं कि वह एक निश्चित सिद्धान्त पर स्थित है। सृष्टि के रूप तथा कार्यों में एक निश्चित एकता, संतुलन, छन्दोमयता, नियम-बद्धता, सौम्यता, सम्बन्धता, जीवन, तथा गति दृष्टिगोचर होती है। यही कलाकार अपने चित्रों में उत्पन्न करना चाहता है और इसी रहस्य को समझकर अपनी रचना को अधिक से अधिक अमूल्य बनाना चाहता है। सच कहिए तो चित्र बनाना भी उसके लिए इतना महत्त्व नहीं रखता जितना वह इन रहस्यों को जानकर अपने जीवन को ऊँचा उठाना चाहता है। फिर भी चित्र उसके बहुत महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि चित्र कलाकार का प्रतिरूप है। उसने जो जीवन पाया उसकी एक झलक है जिसे देखकर उसके रहस्य को समझकर समाज के अन्य व्यक्ति उसी प्रकार अपने जीवन को भी ऊँचा उठाने का प्रयत्न कर सकते हैं। कला का सदा यही कार्य रहा है और आज की कला भी यही कर रही है।
आधुनिक चित्रों को समझना
आधुनिक सूक्ष्मवादी चित्र इस समय साधारण रूप में पहेली-से जान पड़ते हैं। यह तो समझ में आ सकता है कि आधुनिक चित्रकार बहुत ही ऊँचे भावों से प्रभावित होकर चित्र-रचना कर रहे हैं और जो कुछ वे कर रहे हैं उचित मार्ग पर है, परन्तु उनके चित्रों में साधारण मनुष्य को या अधिकतर लोगों को कोई आनन्द नहीं आता। यह आधुनिक चित्र केवल विभिन्न प्रकार के रूप उपस्थित करते हैं। चित्रों के इतने विविध रूप पहले देखने को नहीं मिलते थे। अनेकों प्रकार की शैलियाँ देखने को मिलती हैं, परन्तु इसके अतिरिक्त उसमें प्रत्यक्ष कोई लाभ या आनन्द दृष्टिगोचर नहीं होता। इससे तो साधारण मनुष्य केवल इतना ही समझ पाता है कि आधुनिक चित्रकला की विशेषता यही है कि उसमें सूक्ष्म रूपों की विविधता बहुतायत से पायी जाती है, तथा अजीब-अजीब तरह के रूपों, रंग-रेखाओं का संयोजन मिलता है। इसके अतिरिक्त और कुछ उसकी समझ में नहीं आता। विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म, विचित्र रूप, रंग दर्शक के मन में कौतूहल पैदा करते हैं, जिज्ञासा उत्पन्न करते हैं, पर उत्तर कुछ भी नहीं मिलता――न चित्र उत्तर देता है, न चित्रकार। परिणाम यह होता है कि दर्शक का कौतूहल तथा जिज्ञासा कुछ समय बाद, उत्तर न मिलने पर इन चित्रों को एक रहस्य समझने लगती है। रहस्य का अर्थ ही है जो समझ में न आये। साधारण मनुष्य जब रहस्य को समझ नहीं पाता तो ऊबकर उसकी ओर दृष्टि दौड़ाना ही छोड़