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आधुनिक सूक्ष्म चित्रकला

देता है और धीरे-धीरे उसका कौतूहल और जिज्ञासा दोनों ही नष्ट होने लग जाते हैं । उसको धीरे-धीरे अभेद्य रहस्य से अरुचि हो जाती है और वह उस तरफ ध्यान देना बन्द कर देता है ।

आधुनिक सूक्ष्मवादी चित्र ऐसे ही जटिल हैं । उनमें बुद्धि जरा भी काम नहीं देती । सूक्ष्म चित्रों के पहले जो चित्र हम देखते थे, वे समझ में आते थे, उनका आनन्द सरलता से मिल जाता था या थोड़ा प्रयास करने पर प्राप्त हो जाता था । उनको समझने का एक तरीका था । पर आधुनिक सूक्ष्म चित्रों को समझने में वे सब पुराने तरीके बेकार हैं । उनसे जरा भी काम नहीं चलता । लाख बुद्धि लगाने पर, पुराने तरीकों को इस्तेमाल करने पर जिनसे आसानी से हम चित्रों का आनन्द ले लेते थे, आज हम बिलकुल असमर्थ प्रतीत होते हैं, एक तरह से कहिए कि आधुनिक सूक्ष्म चित्रों के रूप में चित्रकला में एक महान् परिवर्तन हो गया है । सारे पुराने मापदण्ड झूठे पड़ गये हैं । सारा पुराना ज्ञान बेकार हो गया है । उस ज्ञान के सहारे आधुनिक चित्रों की तह में पहुँचना एक टेढ़ी खीर हो गयी है । यही कारण है कि हमारे पुराने कलामर्मज्ञ भी मौन हैं और वह आधुनिक चित्रों को समझने में हमारी जरा भी सहायता नहीं कर रहे हैं ।

ये पुराने कला-मर्मज्ञ चुप हैं । जल्दी कुछ बोलते नहीं, हाँ अकेले में उनसे बात की जाय और श्रद्धा के साथ तो वे अपनी असमर्थता साबित करने के बजाय कहते हैं कि यह आधुनिक चित्र कलाकारों का एक पागलपन है -- इसमें है कुछ भी नहीं, न यह अधिक दिन तक चल सकेगा । परन्तु अभी तो सूक्ष्मवाद का प्रचार बढ़ता ही जा रहा है । दर्शक उससे आतंकित है, कला-मर्मज्ञ भयभीत हैं, यह एक बड़ी विकट परिस्थिति है । प्रतिष्ठित कला-मर्मज्ञ, जो हमारी आँख थे, आज बेकार साबित हो रहे हैं-- हमारी कोई सहायता नहीं कर रहे हैं । एक ओर आधुनिक सूक्ष्म चित्रकला फैलती जा रही है, दूसरी ओर हमारी आँख, प्रतिष्ठित कला-पारखी तथा मर्मज्ञ बेकार होते जा रहे हैं । दर्शक निस्सहाय हो गये हैं । इसका फल यह है कि दर्शक अपनी पुरानी आँख अर्थात् कला-मर्मज्ञों तथा कला-पारखियों से सहारा लेना छोड़कर अपनी निजी आँख का इस्तेमाल करने पर बाध्य हैं, यद्यपि उससे उन्हें अभी कोई अधिक लाभ नहीं । फिर भी अपने-अपने अनुभव, विचार, बुद्धि, कल्पना तथा अध्ययन के बल पर वे धीरे-धीरे सूक्ष्म चित्रकला के प्रति अपनी धारणा बना रहे हैं । यह भी एक महान् परिवर्तन है । कम से कम आधुनिक कला इसमें तो सफल हुई है कि उसके द्वारा समाज का व्यक्ति अपनी आँखों को वापस पा रहा है । अपनी बुद्धि का प्रयोग करने के लिए बाध्य है । उसे अपनी ही आँख पर भरोसा करने का अभ्यास करना पड़ रहा है । चित्रों को समझने के लिए दर्शक दूसरों की आँखों पर अवलम्बित होना अब छोड़ रहा है । स्वतंत्र हो रहा है ।