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कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ


यह बात भी समझ में नहीं आती कि यदि यह सूक्ष्म रहस्यवादी चित्रकला ऐसी है जिसे न कला-मर्मज्ञ समझ पाते हैं न साधारण दर्शक, तो इसका धीरे-धीरे इतना प्रचार कैसे होता जा रहा है और इस क्रान्ति से संसार भर के चित्रकार कैसे प्रभावित होते जा रहे हैं? इस कला-क्रान्ति को न दर्शक समझता है, न कला-पारखी, पर चित्रकार इससे बहुत प्रभावित है और धीरे-धीरे होता जा रहा है—इसका कारण क्या है, इसका तो अर्थ यह हुआ कि आधुनिक कला को न तो दर्शक समझ पाते हैं न कला-पारखी—केवल चित्रकार ही इसे समझता है—तभी तो उससे प्रभावित है। अच्छा हो इसका अर्थ चित्रकार से ही समझा जाय।

भारतवर्ष में अधिकतर चित्रकार वे हैं जो चित्र तो बना सकते हैं, परन्तु उसको समझा नहीं सकते। अर्थात् वे शब्दों के उपयोग से चित्र में पदार्पण करने में असमर्थ हैं। या यों कहिए, वे ऐसा करना अपना धर्म नहीं समझते—गलत समझते हैं। सच तो यही है कि हमारे चित्रकार इतने शिक्षित नहीं कि चित्रों पर बोल सकें, या यूसमझिए, कि चित्रकला भी एक भाषा है, और यही भाषा चित्रकार जानता है। वह इसी के द्वारा बोलता है, अपने भावों विचारों को प्रकट करता है। उसे जबान से बोलने की क्या आवश्यकता? यदि वह जबान से भली-भाँति अपने विचारों को प्रकट कर सकता तो वह साहित्यकार न हो जाता? वह तो कलाकार है—कला की भाषा में बोलता है। जबान क्यों हिलाये? अब आप ही सोचिए। एक महान क्रान्ति कला के क्षेत्र में हो रही है, यह तो सभी को प्रकट है। सारे पुराने तौर-तरीके बदल रहे हैं। पुराने सिद्धान्त बेकार हो रहे हैं। कला अति सूक्ष्म तथा जटिल हो गयी है। साधारण दर्शक के लिए कला-पारखी उसे समझा नहीं पाते। हमारे कलाकार बोलना नहीं चाहते। अब दर्शक क्या करे? कैसे समझे? कैसे आधुनिक चित्रों का आनन्द ले? बड़ी विकट परिस्थिति है । यहीं नहीं, किसी आधुनिक चित्रकार से पूछिए कि अमुक आधुनिक चित्रकार कैसा चित्र बनाता है या उसकी कला कैसी है तो वह तुरन्त कहेगा—बिलकुल बेकार, उसे कुछ नहीं पाता। इसी प्रकार उस अमुक चित्रकार से इनके बारे में पूछिए तो वह भी इन्हें बेवकूफ साबित करेगा। अर्थात् एक चित्रकार दूसरे के चित्रों को भी समझने में असमर्थ है और न समझा ही सकता है। दर्शक की मुसीबत और भी बढ़ गयी।

कुल का तात्पर्य यह हुआ कि दर्शक को आधुनिक चित्र का यदि प्रानन्द लेना है तो वह अपनी आँख से देखे और अपनी बुद्धि का उपयोग करे, किसी के द्वारा समझना बेकार है। चित्रों को स्वयं देखे और स्वयं समझे। हाँ, यदि चित्र का बनानेवाला चित्रकार भी उपस्थित हो तो उसकी भी राय उसके चित्रों के बारे में ले। या उसने कभी कुछ लिखा या