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अन्तर-राष्ट्रीय प्रवृत्ति


यदि आधुनिक यूरोपीय चित्रकला की इस प्रवृत्ति को हम भली-भाँति समझ लें तो हमें निश्चय ही उसका आदर करना चाहिए। इस समय सारा संसार एक प्रकार की अन्तराष्ट्रीय भाषा बनाना चाहता है और इस आधुनिक युग में एक देश दूसरे देश से अलग होकर रह भी नहीं सकता, तब चित्र-कला की भी एक अन्तरराष्ट्रीय भाषा होनी चाहिए। यूरोप अनजाने में या जानकर इस ओर कदम बढ़ा रहा है। हमारा भी कर्तव्य है कि हम इस कार्य में सहयोग दें। आधुनिक यूरोप सभी देशों, समयों की चित्रकला का अध्ययन भली-भाँति कर रहा है। आधुनिक यूरोपीय कला में इजिप्शियन कला, नीग्रो-कला, चीन-जापान की कला, भारत की कला, प्रागैतिहासिक कला, बालकों की कला इत्यादि का सामंजस्य होता जा रहा है। यही तरीका है एक अन्तराष्ट्रीय भाषा बनाने का। यही तरीका भारतीय कला का भी होना चाहिए।

आधुनिक भारतीय नव युवक चित्रकार को यूरोप की आधुनिक चित्रकला तथा प्राचीन भारतीय चित्रकला पद्धति का अध्ययन कर और देशों की भाँति भारत की कला को प्रगति के पथ पर अग्रसर करना चाहिए।