आये। लौटते समय अनेक अद्भुत वस्तुओं के साथ उसने यह भी आवश्यक समझा कि यहाँ का अद्भुत फल आम भी ले आये। दस ऊँट आम वह अपने साथ ले गया। उस समय हवाई जहाज भी न थे, न रेफ्रिजरेटर। ईरान पहुँचने के पहले ही बोरों में ग्राम सड़ चुके थे। राजदूत को इसका पता न था। दरबार जाते समय उसने अपने कर्मचारी को आज्ञा दी कि वह एक सुन्दर चाँदी के थाल में दस बीस बड़े-बड़े आम सुन्दर रूमाल से ढक राज दरबार में ले आये। दरबार खचाखच भरा हुआ था। बड़ी शान से राजदूत ने तश्तरी बादशाह के सामने बढ़ायी कि वह उसकी नकाबपोशी करें। बादशाह ने ज्योंही रूमाल उठाया, सड़े-गले आम मँहक उठे। बादशाह के क्रोध का ठिकाना न रहा। उसने डाँटकर राजदूत से पूछा "क्या बदतमीजी है?" राजदूत ने जब तश्तरी पर नज़र डाली तो उसके होश फाख्ता हो गये। बेचारे को काटो तो खून नहीं । पर वह एक विख्यात कवि भी था और हाजिर- जवाब भी । उसने बादशाह से इस गलती के लिए माफी मांगी और बोला "हुजूर यह भारत वर्ष का सबसे उम्दा फल आम है। मुझे दुःख है कि ये रास्ते में ही सड़ गये, पर यह वहाँ की एक अद्भुत नियामत है। हुक्म हो तो इसका वर्णन करूँ?" बादशाह की अनुमति पाकर उसने कहना प्रारम्भ किया "हुजूर यह वह फल है जो मीठा और खट्टा दोनों ही होता है और यह चूस कर खाया जाता है। मान लीजिए मेरी इस सफेद दाढ़ी को शहद तथा नमक से लपेट दिया जाय और इसे आप चूसें तो आम का पूरा मज़ा आपको मालूम हो सकेगा।" बादशाह बहुत हँसा और राजदूत को उसके कवित्व पर माफ कर दिया। पर ज़रा सोचें, क्या बादशाह को सचमुच आम का आनन्द प्राप्त हुआ होगा? यही है अन्तर देखने और शब्दों में वर्णन करने का। देखना और है, सुनना और, समझना और। आधुनिक कला देखने की वस्तु है। उसका वर्णन करना तो वैसा ही होगा जैसा आम का वर्णन। मैं आधुनिक कला का वर्णन नहीं करना चाहता, केवल यही यहाँ कहूँगा कि आधुनिक कला का आनन्द लेने में उसे किस दृष्टिकोण से देखना होगा।
आधुनिक कला में शैली की विविधता विशेष है। साहित्यिक बन्धु या कवि कहेंगे, तब तो आधुनिक कला का कोई महत्त्व नहीं, उसमें भाव-पक्ष है ही नहीं। लेकिन कला में शैली का अर्थ है रूप, रंग, आकार तथा रेखाओं का विलक्षण संयोजन। संयोजन के भी सिद्धान्त हैं जिनमें एकता, सुमेल, सन्तुलन, लय, गति इत्यादि गुणों के द्वारा नाना प्रकार के रसों की उत्पत्ति होती है तथा भावों की अभिव्यक्ति होती है। प्रत्येक रंग, रूप, आकार तथा रेखाभावों को व्यक्त करती है, रस का संचार करती है। कविता की भाँति उसमें भाव समझना नहीं होता, खोजना नहीं पड़ता, बल्कि रंगों, रेखाओं तथा प्राकारों के विलक्षण संयोजन से ही अपने आप दर्शक के मन पर उनका सीधा प्रभाव पड़ता है। सोचने-समझने की आव-