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अन्तिम बात

श्यकता नहीं पड़ती, जिस प्रकार प्रकृति का रूप देखने पर। बम्बई में मैरीन ड्राइव के सामने खड़े होकर विशाल जल-राशि पर नज़र डालें, मंसूरी में खड़े होकर हिमालय की ओर दृष्टि करें, हवाई जहाज से सुन्दर वन का निरीक्षण करें या सहारा मरुस्थल पर दृष्टिपात करें तो क्या प्रकृति की इस विलक्षणता का आनन्द लेने के लिए आप को कुछ बुद्धि लगानी पड़ती है या शब्दकोष खोजना पड़ता है? देखते ही समुद्र की गहराई, हिमालय की ऊँचाई, सुन्दर वन का घना-पन और सहारा का सूखापन आपकी आँखों को भर लेता है। एक पल भी नहीं लगता। प्रकृति की यही कलाकृतियाँ मनुष्य के चित्रों से कम महत्त्वपूर्ण हैं जो आप उसका आनन्द इतनी आसानी से ले लेते हैं और आधुनिक कागज पर बने या कैनवस पर अंकित आधुनिक चित्रों का आनन्द लेने के लिए आपको उसको समझने की आवश्यकता पड़ जाती है? और उसे देखकर आप कहते हैं "मेरी समझ में नहीं आता आधुनिक चित्र" क्या आप आधुनिक चित्रों को प्रकृति के चित्रों से अलग समझते हैं? क्या आप अपने को तथा चित्रकार को प्रकृति के बाहर समझते हैं? यही है हमारी भूल। जिस प्रकार हम केवल देखकर हिमालय, कल-कल करती पहाड़ी नदियाँ, हरे-भरे घने वन, उमड़ते-घुमड़ते विशाल जल-राशिवाले समुद्रों का आनन्द सहसा ले लेते हैं उसी प्रकार केवल देख कर हमें आधुनिक चित्रों का आनन्द ले लेना चाहिए। जिस प्रकार प्राकृतिक विलक्षण रूपों को देखकर हममें मानसिक तथा हार्दिक प्रतिक्रिया होती है और हम कविता लिख डालते हैं उसी प्रकार इन आधुनिक विलक्षण चित्रों के रूप देखकर हमें आनन्द लेना चाहिए और इसमें शक नहीं कि वे भी हार्दिक तथा मानसिक आन्दोलन हममें उत्पन्न करते हैं। उनकी भी उसी प्रकार प्रतिक्रिया होती है। कविता देखी नहीं जा सकती, उसमें उपयुक्त शब्दों का अर्थ समझना आवश्यक है, पर प्रकृति तथा चित्र में हमें केवल देखकर भी आनन्द मिल जाता है। हाँ, प्रत्येक व्यक्ति पर प्रतिक्रिया अलग-अलग पड़ सकती है। गहरे समुद्र को देखकर कोई उसमें कूदने का आनन्द ले सकता है, कोई उससे डर सकता है और कोई उसकी गहराई को अपनी भावनाओं की गहराई की सीढ़ी बना सकता है। हिमालय को देखकर कोई अपनी क्षुद्रता का अनुभव कर सकता है, पर कोई हिमालय की भाँति ऊँचा बनने की कल्पना कर सकता है। यह तो उसकी मानसिक अवस्था पर निर्भर करता है। इसी प्रकार आधुनिक चित्र केवल एक विलक्षण रूप उपस्थित करते हैं। उनकी भिन्न-भिन्न प्रतिक्रिया लोगों पर हो सकती है, भिन्न-भिन्न भाव उठ सकते हैं। चित्र अपनी जगह रहता है, जैसे हिमालय। कहने का तात्पर्य यह है कि आधुनिक चित्र केवल कलाकार के मस्तिष्क तथा हृदय में उपजे विलक्षण रूप ही हैं जिनको देखा जा सकता है और अपनी-अपनी मानसिक अवस्था के अनुसार आनन्द लिया जा सकता है।