अब यह सवाल उठता है कि इस प्रकार के विलक्षण रूप तो एक बच्चा भी बना सकता है, एक धूर्त भी बना सकता है उसका तथा एक ऊँचे कलाकार का भेद कैसे मालूम हो ?
यह सवाल तो वैसा ही है जैसे कोई पूछे कि हिमालय और विध्याचल की पहाड़ी में क्या अन्तर, समुद्र और तालाब में क्या अन्तर या जमीन और आसमान में क्या अन्तर ? इसका तो कोई जबाब नहीं अगर समुद्र और तालाब को देखकर हम अपने-आप उसका अन्तर नहीं समझ सकते । हाँ, एक बात और भी हो सकती है कि सभी आधुनिक चित्र अभी तालाब की ही सीमा में हों, उनमें समुद्र की विशालता ही न हो तो दर्शक कैसे आसानी से उसका फर्क जान सकता है ? यह बात सही भी हो सकती है, क्योंकि आधुनिक कला नयी है, अभी इसके कलाकारों में तालाब तथा समुद्र का अन्तर न उत्पन्न हुआ हो, पर आधुनिक चित्रों में कौन ऊँचा है यह दर्शक की दृष्टि पर निर्भर करता है और दर्शक की दृष्टि को कैसे दोष दिया जा सकता है, इस गणतंत्र के साम्यवादी युग में ? जनता जनार्दन है और जो वह देखती है वही सच तथा सही है । पर ऐसा भी सोचना भूल है । शेर और नकली शेर की खाल पहने गधे की पहचान हो सकती है यदि दर्शक चैतन्य हो। इसके अतिरिक्त कला के साधारण सिद्धान्तों से दर्शक को थोड़ा परिचित अवश्य होना चाहिए। रूप, रंग, आकार तथा रेखाओं का चित्र में महत्त्व समझना चाहिए । कला में संयोजन के सिद्धान्त तथा उसके गुण, सुमेल, एकता, लय, छन्द, गति आदि के उपयोग से परिचित होना आवश्यक है ।
आधुनिक कला चित्रकार के मन में सहसा उत्पन्न हुए स्वरूपों का प्रतीक है । इसको बुद्धि से समझा नहीं जाता, बल्कि इन्हें देखकर सहसा आनन्द लिया जाता है जैसे सूर्य की सतरंगी किरणों का जल-प्रपात के धवल फुहार पर ।