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कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ

उससे परे नहीं है । मनुष्य वही कर सकता है जो मनुष्य की क्षमता के अन्दर है, जिस प्रकार मेढ़क तालाब में रहकर वही कर सकता है जो मेढ़कों की क्षमता के भीतर है । अब प्रश्न यह है कि मनुष्य की क्षमता क्या है और कितनी है । कभी-कभी तो मनुष्य की क्षमता को भी अपार माना गया है । यह क्षमता कहाँ से आती है समझ में नहीं आता । जो भी हो, साधारण दृष्टि से मनुष्य की क्षमता वही हो सकती है जो उसे प्राप्त है और मनुष्य को अपनी उस शक्ति का उपयोग समाज में ही करना है, समाज से जो लिया है उसे समाज को ही देना है ।

इस विचार से “कला कला के लिए है" यह न्याय संगत नहीं मालूम पड़ता । कला मनुष्य का कार्य है, एक शक्ति है । मेढ़कों का कूदना, फुदकना, टर्र-टर्र करना भी एक प्रकार की कला है और जिस प्रकार उनकी कला का उपयोग उनके लिए तथा उनके समाज के अन्य मेढ़कों के लिए ही है, उसी प्रकार मनुष्य की कला का उपयोग भी उसके लिए तथा केवल मनुष्य के समाज के लिए ही है । मेढ़कों ने फुदकना तथा टर्र-टर्र करना मेढ़कों से ही सीखा है । उनकी इस कला का गुरु उनके माता-पिता तथा उन मेढ़कों का समाज ही है । उसी प्रकार मनुष्य भी कलाओं को अपने समाज से ही सीखता है, कला का कार्य करने की प्रेरणा भी उसे अपने सामाजिक जीवन की अनुभूतियों से ही प्राप्त होती है । उसकी कला का रूप उसकी अनुभूतियाँ होती हैं, फिर "कला कला के लिए है" यह कैसे कहा जा सकता है ? लेकिन “कला कला के लिए है" यह विचार बड़ा प्राचीन है और इसमें विश्वास करने वाले आज भी बहुत से हैं । आधुनिक पिकासोवाद, सूक्ष्मवाद, क्यूबिज्म, सूरियलिज्म, इत्यादि सभी "कला कला के लिए है" से प्रभावित कहे जा सकते हैं, क्योंकि इन सभी प्रकार की शैलियों में सामाजिक-चित्रण बहुत ही कम मिलता है, और मिलता भी है तो जोर अन्य वस्तुओं पर दिया होता है, खास कर रूप तथा रंग पर । ऐसे चित्र में विषय गौण-सा रहता है । इन चित्रों का आनन्द साधारण समाज नहीं ले पाता, परन्तु कलाकार इनसे बहुत आनन्द पाता है । ऐसे कलाकारों से लोग शिकायत करते हैं कि उनके चित्र जनता की समझ में नहीं आते । उस पर आधुनिक कलाकार चुप रहता है और इसकी चिन्ता नहीं करता कि उसके चित्र समाज को पसन्द हैं या नहीं । ऐसी स्थिति में ही लोग कला को कला के लिए समझने लगते हैं, तब कलाकार समाज का ख्याल करता हुआ नहीं दिखाई पड़ता । यह स्थिति देखकर ही फ्रांसीसी विचारक लकांतदलिस्ल Leconte de Lisle ने कहा है---

"कलाकार उसी समय इस विचार की ओर झुकता है कि 'कला कला के लिए है," जब वह अपने को अपने समाज से जुदा पाता है ।" अर्थात् जब समाज कलाकार की कृतियों का मूल्य समझने में असफल होता है और कला का आदर करना त्याग देता है, तब कला-