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कला का कार्य

कला और साहित्य समाज के जीवन-दर्पण माने गये हैं अर्थात् कला का कार्य है अपने समय के सामाजिक जीवन की अभिव्यक्ति करना । इस परिभाषा के अनुसार आधुनिक चित्रकला को वर्तमान सामाजिक जीवन का ही चित्रण कहना चाहिए, परतु आज भी भारतीय चित्रकार प्राचीन विषयों पर चित्रण करते हैं । प्राचीन समय में भारतीय चित्रकला के विषय अधिकतर धार्मिक तथा ऐतिहासिक होते थे, जैसे राम,कृष्ण, बुद्ध तथा अन्य देवी देवताओं के जीवन तथा लीला सम्बन्धी चित्र ।आज भी भारत में अधिकतर चित्र धार्मिक या ऐतिहासिक बनते हैं, यद्यपि कुछ नये तथा युवक कलाकारों ने इसके विरुद्ध आज के सामाजिक जीवन का चित्रण आरम्भ कर दिया है ।

यदि हम प्राचीन चित्रों के विषय तथा पात्रों के जीवन, रहन-सहन, वेश-भूषा पर दृष्टि डालें तो ज्ञात होगा कि वह जीवन अधिकतर साधारण जीवन से दूर, कुछ दार्शनिक धरातल पर, एक वैभवशाली समाज का चित्रण है । भारत में सबसे प्राचीन चित्र अजंता के हैं । अजंता की चित्रशाला में जो चित्र अंकित हैं उनमें अधिकतर चित्र राजा-महाराजाओं, राज-कुमारियों के सुनहले जीवन के चित्र हैं या बौद्ध धर्म से सम्बन्धित संन्यासी जीवन के चित्र । ये दोनों प्रकार के चित्र आज के साधारण जीवन से बहुत दूर है, किन्तु फिर भी भारत में इनका बहुत प्रचार है और बंगाल-शैली के चित्रकारों ने तो अपने अधिकतर चित्र उसी प्रेरणा पर आधारित किये हैं।

भारत की अन्य प्राचीन चित्र-शैलियों में भी जैसे जैन, मुगल, राजपूत तथा पहाड़ी, कला में, उस समय के वैभव तथा चमक-दमक का ही चित्रण मिलता है और विषय भी धार्मिक या ऐतिहासिक होता है । कला की दृष्टि से ये सभी शैलियाँ प्रशंसा के योग्य हैं और इन्होंने समय-समय पर भारत का गौरव बढ़ाया है । आज हम भले ही दूसरे प्रकार की नयी शैलियों को, जो आज के समयानुकूल हैं, प्रारंभ करें, परन्तु इन प्राचीन चित्रकला-शैलियों का महत्त्व कम नहीं किया जा सकता ।

संसार का कोई भी दर्शन या सिद्धान्त यह नहीं कह सकता कि वह अपने देश या समाज के जीवन को सुखी, समृद्धिशाली तथा प्रगतिशील नहीं बनाना चाहता । ऐसा करने के लिए