पृष्ठ:कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ.djvu/४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२९
कला का कार्य

और उस कालिमा को मिटाने का कभी प्रयत्न न करेंगे । यदि कला ऐसा ही दर्पण है, जो समाज को उसका असली रूप नहीं दिखा सकता, केवल उसका वर्तमान कलुषित रूप ही दिखा सकता है, तो निश्चय ही कला दर्पण की भाँति निर्जीव है, बेकार है । कला का कार्य केवल वर्तमान तथा भूत का ही चित्रण करना नहीं वरन् उसे भविष्य भी लक्षित करना चाहिए । भूत को देखकर हम यह जान सकेंगे कि पहले हमारा रूप कैसा था, हम किस अवस्था में थे, हमारी प्रगति कहाँ तक हुई थी । वर्तमान को देखकर हम यह जानते हैं कि हमारा आज का रूप कैसा है । हमारा रूप पहले से खराब है या सुन्दर । भूत तथा भविष्य का रूप देखकर हम अपने वर्तमान रूप में परिवर्तन करने का प्रयत्न कर सकते हैं । अपने रूप को और भी सुन्दर बना सकते हैं । यदि कला दर्पण है तो ऐसा दर्पण है जिसमें हम अपने भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों का दर्शन कर सकते हैं । समाज को यदि दर्पण की आवश्यकता है तो ऐसे ही दर्पण की । केवल वर्तमान रूप प्रतिबिम्बित करनेवाले दर्पण की नहीं ।

इसका तात्पर्य यह हुआ कि कला भूत, भविष्य तथा वर्तमान तीनों को ध्यान में रखकर ही समाज को प्रेरणा दे सकती है, प्रगतिशील बना सकती है, सुख प्रदान कर सकती हैं । इसलिए आज के कलाकार के लिए यही आवश्यक नहीं है कि वह केवल आज के समाज का जैसा रूप है वैसा ही चित्रण करे, वरन् आज के समाज के रूप की और आज से पहले के समाज के रूप की तुलना कर यह जान सके कि आज हमारा रूप सुन्दर है या पहले था । यदि हमारा रूप पहले आज से अधिक सुन्दर था और किसी कारण आज हमारे मुख पर कालिमा लग गयी है तो हमारा सबसे पहला कर्तव्य है कि हम अपनी कालिमा को धोकर साफ कर दें और पहले जैसा सुन्दर मुख प्राप्त करने का प्रयत्न करें । इसके पश्चात् ही हमें अपने भविष्य के रूप का चिन्तन या कल्पना करनी होगी । बिना ऐसा किये हमारे समाज की गाड़ी आगे नहीं बढ़ सकती, और यदि ऐसा करते हैं तो हम एक अनिश्चित डांवाडोल परिस्थिति के साथ आगे बढ़ने का असफल प्रयत्न करेंगे । इसलिए यदि आज का चित्रकार प्राचीन भारतीय चित्रकला से प्रेरणा लेता है तो यह अनुचित नहीं है और इसका लाभ भी निश्चित है । इसका तात्पर्य यह है कि आज का कलाकार अपने समाज की परिस्थिति से भली-भाँति परिचित है, वह अपने विकृत समाज के रूप को देखकर चिन्तित है, और इसमें प्रयत्नशील है कि कम से कम वह आज के समाज का रूप उतना सुन्दर तो कर दे जितना पहले था । इसके पश्चात् वह इसकी भी कल्पना करेगा और नये मार्ग खोजेगा जैसा हमें भविष्य में होना है या जिस मार्ग पर चलना है ।

सदियों की गुलामी और खास कर पिछले डेढ़-दो सौ वर्षों से फिरंगियों के अधिकार में