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कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ


सच तो यह है कि सौन्दर्य बाह्य रूपों में भी होता है और दर्शक के मन में भी। मान लीजिए, सौन्दर्य सत्य है जैसा कि प्राचीन विचारकों ने कहा है और आज भी बहुत से विद्वान् मानते हैं। सत्य रहस्यमय शब्द अवश्य है, परन्तु उसका अर्थ कुछ दूर तक हम सभी समझते हैं। यह सत्य है कि सूर्य पूर्व में उदय होता है—उसका प्रकाश हमें प्राप्त होता है। यह भी सत्य है, सूर्य के डूबने के पश्चात् रात होती है और पुनः दिन। रात और दिन, दोनों में अन्तर है। रात में सूर्य नहीं दिखाई पड़ता, दिन में दिखाई देता है। अब यदि दिन में जब ऊपर सूर्य चमक रहा हो और कोई कहे रात है तो यह उस समय तथा स्थान के लिए मिथ्या अवश्य है। इसी प्रकार सौन्दर्य के बारे में भी है। कमल का फूल सुन्दर होता है, पर ऐसा भी कोई कह सकता है कि वह असुन्दर है, यद्यपि यह सत्य न होगा। नील आकाश में उगा चाँद दो प्रेमी देखते नहीं अघाते, परन्तु एक विरहिणी को वही चाँद काटे खाता है। चाँद अपनी जगह है। परिस्थितियाँ भिन्न हैं। एक जगह चाँद प्रेमी-प्रेमिका के बीच सौन्दर्य का स्रोत है और दूसरी ओर विरहिणी के लिए कांटा। या यों कहिए, मिलन में चाँद सुन्दर लगता है और वियोग में असुन्दर। दोनों दो भावनाएँ तथा मनःस्थितियाँ हैं। विभिन्न मनःस्थितियों में एक ही मनुष्य को एक ही वस्तु सुन्दर तथा असुन्दर प्रतीत हो सकती है। यहाँ पर यह बात सिद्ध होती है कि सुन्दरता मन:- स्थिति पर निर्भर करती है। वस्तु में सुन्दरता है कि नहीं, यह प्रश्न नहीं उठता। वस्तु सुन्दर भी हो तो भी मन विकृत हो या मन अन्यत्र कहीं लगा हो तो वस्तु असुन्दर दिखेगी या सुन्दरता का आभास ही न होगा। यदि मन हम किसी चीज में लगायें तो उसमें सौन्दर्य दृष्टिगोचर होने लगेगा। अर्थात् सौन्दर्य के दो हिस्से हैं। दोनों के सामंजस्य से सौन्दर्य का बोध होता है। वे हैं वस्तु तथा मन। वस्तु में भी सौन्दर्य है और मन में भी।

यह कहना कि केवल मन में सौन्दर्य है भूल है, क्योंकि यदि मन में ही सौन्दर्य है तो वस्तु की क्या आवश्यकता? बिना वस्तु देखे मनुष्य अपने मन में सौन्दर्य का बोध करता जा सकता है। हो सकता है, कुछ अति काल्पनिक व्यक्ति ऐसा करते भी हों, पर एक बात हमें नहीं भूलनी चाहिए कि जन्म के साथ ही हम अपनी इन्द्रियों से वस्तु का आभास करना आरम्भ कर देते हैं, जब कि कल्पना हमसे कोसों दूर रहती है और जिन वस्तुओं को हमने जन्म से देखना आरम्भ किया है उनका नक्शा हमारे अचेतन मन पर सदैव अंकित रहता है। आगे चलकर यदि हम मन में सौन्दर्य खोजने का प्रयास करें तो इन वस्तुओं को नहीं भुलाया जा सकता। इतना ही नहीं, ईश्वर की कल्पना करते समय भी उसे हम संसार में देखी वस्तुओं, प्राकृतियों के आधार पर ही कल्पित करते हैं, जैसे-