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पृष्ठ:कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ.djvu/७८

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कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ

आदर्श ही था। परन्तु यदि यह केवल आदर्श भी रहा हो तो बहुत ही सुदृढ़, सुन्दर तथा अनुमोद्य है। ऐसे शिल्पी आधुनिक समय में तो शायद ही कहीं हों, परन्तु आज हमारी कल्पना में भी ऐसा शिल्पी नहीं आता, जिस प्रकार आज हमारी कल्पना में यह नहीं आता कि प्राचीन विशाल तथा भव्य मन्दिर जो आज भी भारत की शिल्पकला का गौरव बचाये हुए हैं, किस प्रकार निर्मित हुए होंगे।

हम प्राचीन अजन्ता तथा बाग इत्यादि की चित्रकला देखकर अपने प्राचीन कलाकारों पर आश्चर्य प्रकट करते हैं। मीनाक्षी, मदुरा, खजुराहो, भुवनेश्वर के भव्य मन्दिर, आगरे का ताजमहल देखकर हमारे आधुनिक कलाकार तथा इंजीनियर दाँतों तले अँगुली दबाते हैं। इनकी कला उनके सामने एक पहेली-सी दीखती है। इनका अनुमान लगाना कठिन हो जाता है। हमें यह स्वीकार करना पड़ता है कि वे कलाकार या शिल्पी महान् थे और यह भी अनुमान करना पड़ता है कि इन शिल्पियों का ज्ञान कितना व्यापक था। जो कुछ भी प्राचीन उदाहरण प्राप्त हैं, वे हमारी आँखें खोलने के लिए पर्याप्त हैं।

यहाँ हमारा यह तात्पर्य नहीं है कि आज हम भी वेदों, शास्त्रों तथा तमाम विद्याओं के पण्डित होकर कला का कार्य करें, परन्तु यह अवश्य है कि हम आँख मूँदकर बिना पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किये कला का कार्य कर ही नहीं सकते। जिस भाँति संसार के अन्य व्यक्तियों के लिए ज्ञान आवश्यक है, उसी भाँति कलाकार के लिए भी। कलाकार संसार के व्यक्तियों से न्यून नहीं है। उसकी भी वही आवश्यकताएँ हैं जो औरों की। जिस प्रकार शिक्षा औरों के लिए आवश्यक है, वैसे ही कलाकार के लिए भी। कलाकार को भी पूर्ण शिक्षित होना चाहिए। कलाकार को भी बहुमुखी ज्ञान की आवश्यकता है। उसका व्यक्तित्व सामंजस्यपूर्ण होना चाहिए। उसमें भी मस्तिष्क, हृदय तथा कार्य कुशलता के सभी गुण होने चाहिए। उसे केवल चित्र बनानेवाला, गानेवाला, या नाचने वाला ही नहीं होना चाहिए। जो ज्ञानी है, शिक्षित है, सामंजस्यपूर्ण व्यक्तित्ववाला है, जो रचना का कार्य करता है वही कलाकार है।

आधुनिक समय म भारतीय कलाकार वे ही अधिकतर हैं जो किसी कारणवश शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके, इसका पूर्ण अवसर उन्हें प्राप्त नहीं हो सका, उनका शिक्षा की ओर मन नहीं लगता था। जो मस्तिष्क के प्रयोग से डरते थे और कोई भी मानसिक तथा शारीरिक कार्य करने में असमर्थ थे, वे ही हारकर कलाओं के पथ पर अग्रसर होते थे, यह समझ कर कि वे हाथ का काम कुछ कर सकते हैं, अर्थात् ‘टेक्निकल’ ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं, वे किसी प्रकार जीवन-निर्वाह करने के लिए कोई न कोई इस प्रकार की कला सीखते