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पृष्ठ:कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ.djvu/९२

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चित्रकला

खोज के पश्चात्। अवनीन्द्रनाथ ठाकुर तथा नन्दलाल बोस का अधिक समय रंग-चित्रण सम्बन्धी अन्वेषण में ही बीता, पर इसमें भी साहित्य की कमी से उनको अधिक सामग्री नहीं प्राप्त हो सकी, केवल उसकी एक झलक-सी ही उनको प्राप्त हुई है। वास्तव में यह प्रयास बड़े महत्त्व का है, यदि इस शैली के चित्रकार इससे आगे भी कुछ अधिक खोज को बढ़ा सकते। इसलिए खोज का कार्य भावी चित्रकारों को चलाते रहना चाहिए, जिसमे चित्रकला के सिद्धान्त बन सकें और भारत की चित्रकला का विकास अधिकाधिक हो सके।

चित्र-संयोजन

किसी भी कला में सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य संयोजन का होता है। कुछ विचारक तो कला का तात्पर्य किसी भी वस्तु की रचना-क्रिया से समझते हैं। जैसे कवि शब्दों के चयन से, और संगीतज्ञ स्वरों के मेल से सरस संयोजन करते हैं, चित्रकार भी रूप-रंग के उचित सम्मिश्रण तथा अनुपात से संयोजन कर चित्र का निर्माण करता है। संयोजन प्रायः सभी करते हैं, परन्तु जिसका संयोजन जितना ही विलक्षण और सुन्दर होता है उसका चित्र उतना ही आकर्षक होता है।

संयोजन का महत्त्व वस्तुओं के अलंकरण मात्र से कदापि नहीं है, हाँ; विभिन्न वस्तुओं के संयोजन से अद्भुत चमत्कार अवश्य उत्पन्न किये जा सकते हैं। आज विद्युत्, वायुयान, रेडियो तथा ऐटम बम आदि वस्तुओं का आविष्कार हो चुका है। यह सर्वविदित है कि गंधक और पोटास के संयोजन से पटाखे का निर्माण होता है, हलदी और चूने के सम्मिश्रण से एक प्रकार का लाल रंग (रोरी) निर्मित होता है। चूने और हलदी का अनुपात या संयोजन जैसा होगा, वैसा ही गाढ़ा या हलका लाल रंग बनेगा। इसलिए किसी भी रचनात्मक कार्य में संयोजन का कार्य बहुत ही विलक्षण होता है। प्रत्येक कला में संयोजन के कुछ न कुछ सिद्धान्त स्थिर कर लिये जाते हैं, जिससे इच्छानुसार उस संयोजन का प्रभाव और परिणाम ज्ञात हो सके। आपको नारंगी रंग बनाना है। शुद्ध लाल तथा शुद्ध पीले के सम-संयोजन से नारंगी रंग बनता है। इसमें यदि लाल के साथ नीले रंग का संयोजन करें तो हम कदापि अपने प्रयत्न में सफल न हो सकेंगे। अतः चित्रकला-संयोजन-सिद्धान्त को बिना समझे चित्रांकन नहीं किया जा सकता। जो चित्रकार इस प्रकार के सिद्धान्त-रहित चित्र बनाया करते हैं उनके चित्र उसी प्रकार के होते हैं जैसे किसी कूड़ाखाने में कूड़ा, जिसमें असंख्य वस्तुएँ बिना किसी संयोजन-सिद्धान्त के फेंक दी जाती हैं और उनका परिणाम यह होता है कि वे सब मिलकर सड़ती हैं तथा दुर्गन्ध उत्पन्न करती हैं।