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कवितावली

दास तुलसीस के बिरुद बरनत बिदुष,
बीर बिरुदैत बर बैरि धाँके।
नाक नरलोक पाताल कोउ कहत
किन कहाँ हनुमान से बीर बाँके॥

अर्थ―किसकी आवाज़ पर चण्डीश (शिव) विधि (ब्रह्मा) चौंक पड़े थे और चण्डकर (सूर्य) ने थककर फिर घोड़ों को चलाया था? किसके बल को देखकर भीम से योधाओं ने आँखें बन्द कर ली थीं? वह कौन तुलसीदास के प्रभु (रामचन्द्र) का सेवक है जिसका विरुद (यश) पण्डित लोग वर्णन करते हैं? किस विरद रखने- वाले वीर की बड़े बड़े वैरियों पर धाँक (रौब) है? पृथ्वी, आकाश और पाताल में हनुमान् से वीर कहाँ हैं? कोई कहता क्यों नहीं।

[ १३० ]

जातुधानावली-मत्त-कुंजर-घटा निरखि
मृगराज* जनु गिरि तें टूट्यौ।
विकट चटकन चपट, चरन गहि पटक महि,
निघटि गये सुभट, सत सब को छूट्यौ॥
दास तुलसी परत धरनि, थरकत, झुकत
हाट सी उठति जम्बुकनि लूट्यौ।
धीर रघुवीर को बीर रन-बाँकुरो।
हाँकि हनुमान कुलि कटक कूट्यौ॥

अर्थ―राक्षसों के समूह की मस्त-हाथी-रूपी घटा सी (आती) देखकर हनुमान् शेर की तरह पर्वत से (उसपर) झपटा। बेढब चपेटों की चोट से और पैर पकड़-पकड़कर ज़मीन पर पटक देने से सुभट (योधा) निघटि गये (निःशेष हो गए अथवा बेदिल हो गये, हिम्मत हार गये)। और सबका सत्त छूट गया। तुलसीदास कहते हैं कि (हनुमान् के डर से योधा) ज़मीन पर गिर पड़ते थे अथवा (हनुमान् के मारे) पृथ्वी पर गिर रहे थे और धड़कते थे अथवा वीर गिर रहे थे और उनके गिरने से पृथ्वी धड़क (हिल) रही थी। ( हनुमान् के) झुकत


  • पाठान्तर―गजराज।