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भाता-पिता, पुत्र आदि

लोग तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम और माता का नाम हुलसी बताते हैं। कवितावली के निम्नलिखित छन्द से ‘रामबोला’ नाम होने का पता तो चलता है, परन्तु माता-पिता के नाम का कुछ पता नहीं चलता—

“साहिब सुजान जिन स्वानहू को पच्छ कियो ‘रामबोला’ नाम हौं गुप्ताम राम साहि को।”

माता का नाम हुलसी होने का प्रमाण यह कहा जाता है कि तुलसीदास ने लिखा है कि “शम्भु प्रसाद सुमति हिय हुलसी” अथवा अब्दुर्रहीम खानखाना ने कहाँ लिखा है कि “गोद लिये हुलसी फिरै तुलसी सो सुत हाय”। परन्तु इन दोनों अवतरणों से हुलसी माता का नाम होने का पता नहीं चलता। दोनों में हुलसी से ‘प्रसन्न’ होने का अर्थ स्पष्ट निकलता है। अपनी माता का नाम कोई नहीं लिखता, फिर जिसने पिता का नाम कहीं न लिखा हो वह माता का नाम क्यों लिखता? दोनों (माता और पिता) ही ने तो ‘जग जाय’ तज दिया था, फिर उनका ज्ञान ही तुलसीदास को क्योंकर होता?

पिता, पुत्र आदि कुटुम्बियों के प्रमाण में डाकृर ग्रियर्सन ने निम्नलिखित दोहे दिये हैं। परन्तु किसी प्रामाणिक प्रति में उनका पता नहीं चलता, अत: वे प्रामाणिक नहीं माने जा सकते। न मालूम किसने कब बनाये और यदि तुलसीदास ने स्वयं रचे तो उनके ग्रन्थों में उनका पता क्यों नहीं है।

दुबे आत्माराम है पिता-नाम जग जान।
माता हुलसी कहत सब तुलसी के सुन कान॥
प्रहलाद उधारन नाम है गुरु का सुनिए साध।
प्रगट नाम नहि कहत जो कहत होय अपराध॥
दीनबंधु पाठक कहत ससुर-नाम सब कोह।

रत्नवलि तिय–नाम है सुत तारक गति होइ॥
विवाह

तुलसीदास के विवाह के सम्बन्ध में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। एक अवतरण ऊपर दिया गया है, जिसमें उनके ससुर का नाम दीनबन्धु पाठक और उनकी स्त्री का नाम रत्नावली दिया है। दूसरा प्रियादासजी वाला अवतरण है जिसमें उनकी स्त्री का घर जाना और तुलसीदास का पीछा करना, फिर उसके ताने पर वैराग्य होना आदि अनेक दन्त-कथाएँ मिलेंगी। तीसरे महादेवप्रसाद कृत भक्ति-विलास में आगे दी हुई कहानी मिलेगी।