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(अ) ‘वायस’

इन्द्र का बेटा लवन्त एक बेर पञ्चवटी में गया, जहाँ सीता-साहित राम-लक्ष्मणा रहते थे। जयन्त सीताजी को चोंच मारकर भागा। रामचन्द्र सीता की गोद पर सिर रक्खे हुए सो रहे थे। रुधिर की धारा देखकर रामचन्द्र जाग पड़ें और उनको बड़ा क्रोध आया। बस उन्होंने एक वाण चलाया जो जयन्त के पीछे चला। जयन्त को भारी भय हुआ और वह भागा! परन्तु जहाँ कहीं वह गया, अस्त्र ने उसका पीछा किया। अन्त में नारदजी के उपदेश से वह फिर रामचन्द्रजी की शरण में आया और रामचन्द्र ने इसकी एक आँख फोड़कर उसे छोड़ दिया।

(क) ‘विराध’

यह एक राक्षस था जब रामचन्द्र, सीता और लक्ष्मण-सहित, वन में घूम रहे थे तब उन्हें विराध मिला। उसने सीता को हरना चाहा कि रामचन्द्र ने उसे मार डाला।

(ब) ‘खर, दूषण’

खर, दूषण दोनों दण्डक वन के रखवाले सूर्पनखा के भाई थे। जब सूर्पनखा की नाक लक्ष्मण ने काट ली तो वह खर-दूषण को लड़ने के लिए बुला लाई। खर-दूषण बड़ी फ़ौज लेकर चढ़ आये परन्तु रामचन्द्र ने अकेले ही सबको मार गिराया।

(सं) ‘कबन्ध’

‘कबन्ध’ एक गन्धर्व था जो शापवश राक्षस हो गया था। रामचन्द्र ने उसे मारा तो वह शाप से छूट गया।

(द) ‘बालि’

इसकी कथा ऊपर देखो।
६—नाथ सुनी भृगुनाथ कथा बलि बालि गये (लङ्का० छं० ११२)।

(अ) ‘भृगुनाथा’

परशुराम की कथा रामायण में है। धनुष-भङ्ग का शब्द सुनकर वे जनकपुर में आये और समस्त सभा को डाँटकर उन्होंने अपना रोष दिखलाया। रामचन्द्र का बल देखकर उन्हें धनुष देकर वे चुपचाप सप करने जङ्गल को चले गये।

(ब) ‘बलि’

इसको वामन रूप धर विष्णु ने नष्ट किया।
७—मट भीम से भीमता निरखिकर नयन ढाँके। (लङ्का० छ० १२९)

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