पृष्ठ:कवितावली.pdf/२३१

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कांडांक उ० १८० " ११० छन्दांक पृष्ठीक ३२० १७ २५२ २३१ १३५ लं० ५१ १७८ १०६ राम नाम मातु पितु, स्वामी समग्थ, हितु राम मातु पितु बंधु राम विहाय 'मरा' जपते राम सरासन में चले लीर "राम से: साम किये नित है राम हैं मातु, पिता, गुरु, बंधु रावन की रानी जातुधानी बिलखानी कहैं रावन सो राज रेग बाढ़त बिराट उर रावरे दोष न पायेन को रावरो कहावौं, गुन गावौं राम रावराई रीति महाराज की निवाजिए जो माँगने सो रवि सी रवनि, सिंधु मेखला-अवनिपति रूप-सील-सिंधु, गुन-सिंधु, बंधु दीन को "रे नीच ! भारीच बिचलाइ, इति ताड़का रोप्यो पाँव पैज के बिचारि रघुवीर बल रोध्यो रन रावन, बोलाए बीर बानइत २०५ १२१ ” २५ उ० १६४ १०४ १७७ 5530 उ० १४३ २८५ ४२ उ० १४८ २६० लपट कराल वाल जालम लाइ लाइ आगि भागे बाल-जाल जहाँ तहाँ लागि दवारि पहार ठही 'तागि लागि प्रागि', भागि भागि चले लालची ललात बिललात द्वार-द्वार दीन लीन्हों उस्लारि पहार बिसाल लोक बेदहू विदित बारानसी की बड़ाई लोग कहैं अरु हौं हूँ कहाँ लोगन के पाप, कैधौं सिद्ध-सुर-साप लोचनाभिराम धन-स्याम राम रूप खोथिन सौ लोहू के प्रवाह चले जहाँ वहाँ उ० १७३ ३१३ १८२ २०१ ७ बा० १२ लं. ४ १२ १३३ २७