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कवितावली

कवितावली कारण जागते रहते हैं, परतु मै ( तुलसीदास) केवल रामचंद्रजी के भसेसे सुख से सोता हूँ। (छप्पय छद) राम मातु, पितु, बंधु, सुजन, गुरु पूज्य, परम हित । साहेब सखा सहाय नेह नाते पुनीत चित । देस कोस कुल कर्म धर्म धन धाम धरनि गति । जाति पॉति सब भॉति लागि रामहिं हमारि पति । परमारथ स्वारथ सुजस सुलभ राम ते सकल फल । कह 'तुलसिदास' अब जब कबहुँ एकाराम ते मोर मल ॥११०॥ शब्दार्थ-सुजन-( स० स्वजन) आत्मीय । हित = हितकारी, मित्र । साहेब- स्वामी। लेह - (सं०) स्नेह । नाता= सबध । 'पुनीत- पवित्र । कोस=(कोष खजाना । गति-पहुँच, शरण । पति= प्रतिष्ठा । परमारय = मोक्ष । स्वास्थ लौकिक सुख । भावार्थ-मेरे माता, पिता, बधु, आत्मीय, पूज्य गुरु, परम हितकारी, स्वामी, सखा, सहायक और जहाँ तक पवित्र मन से स्नेह के सबंध हैं सब कुछ रामनन्द्रजी ही हैं । देश, कोष, वश, कर्म, धर्म, धन, घर, पृथ्वी मेरी पहुँच और सब प्रकार से मेरी जाति-पॉति की प्रतिष्ठा रामचद्रजी ही तक है। स्वार्थ परमार्थ, सुयश आदि सब फल राम-कृपा से ही सुलभ हैं। तुलसीदास कहते हैं कि इस समय या जब कभी हो, मेरा भला एक रामचंद्रजी से ही 'हो सकता है। मूल-महाराज बलि जाउँ राम सेवक-सुखदायक । महाराज बलि जाउँ राम सुन्दर सब लायक। महाराज बलि जाउ राम सब संकट मोचन। मराज बलि जाउँ राम राजीव-विलोचन । बलि आउँ राम करुनायतन प्रनतपाल पातफहरान । "बलि जाउँ राम कलि-भय-बिकल 'तुलसिदास' राखिय सरन ॥११॥ 'शब्दार्थ---राजीव - कमल । राजीव-विलोचनकमल के समान अखिों वाले। करुनायतन-करुणा के घर । प्रनतपाल = प्रणत (शरणागत)