पृष्ठ:कवितावली.pdf/३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
बालकाण्ड

होता है। कभी हठ करके ख़फ़ा होकर कुछ कहते हैं फिर वही लेते हैं कि जिसके लिए अड़ करते हैं। दशरथ के एसे चारो लड़के तुलसीदास के मन में सदा बिहार करते रहें।

शब्दार्थ―आरि करै, अरै = हठ करते हैं। प्रतिबिंब = परछाहीं

[ ५ ]

बर दंत की पंगति कुन्दकली, अधराधर-पल्लव खोलन की।
चपला चमकै घन बीच जगै छवि मोतिन माल अमोलन की॥
घुँँघुरारी लटैं लटकैं मुख ऊपर, कुंडल लोल कपोलन की।
निवछावरि प्रान करैं तुलसी, बलि जाउँ लला इन बोलन की॥

अर्थ―अच्छे दाँतों की पाँति कुन्दकली सी है और ओठों के खालने से ऐसा प्रतीत होता है मानों बादलों के बीच में बिजली चमकती है, अथवा, अधर खोलने से दाँत कुंदकली से दिखाई देते हैं और अमूल्य मोतियों की माला ऐसी सुन्दर है मानों बादल के बीच में बिजली चमकती है। घुँघुरारी लटैं मुख के ऊपर लटकती हैं। कुण्डल कपोलों पर शोभायमान हैं ( हिल रहे हैं )। तुलसी इन पर अपने प्राण न्योछावर करता है और इन बालों की बलैयाँ लेता है।

शब्दार्थ―पंगति = पंक्ति, लकीर। अधर = ओठ। चपला = बिजली।

[ ६ ]

पद कंजनि मंजु बनी पनहीं, धनुहीं सर पंकजपानि लिये।
लरिका सँग खेलत डोलत हैं सरजूतट चौहट हाट हिये॥
तुलसी अस बालक सों नहिं नेह कहा जप जोग समाधि किये?।
नर ते खर सूकर स्वान समान, कहौ जग में फल कौन जिये॥

अर्थ―कमल से पैरों में सुन्दर पनही बनी (पहने) हैं और कमल से हाथों में तीर कमान लिये हुए लड़कों के सङ्ग सरजू के किनारे चौहट हाट हिये (चौराहे व बाज़ार व हृदय) में खेलते फिरते हैं। हे तुलसी! यदि ऐसे बालक से प्रीति नहीं है, तो जप योग व समाधि करने से क्या लाभ? वे मनुष्य गधे, सुअर व कुत्ते के समान हैं। कहा उनके जीने से इस संसार में कौन लाभ है, अर्थात् उनका जीना वृथा है।

[ ७ ]

सरजू बर तीरहि तीर फिरैं रघुबीर, सखा अरु बीर सबै।
धनुहीं करतीर, निषंग कसे कटि, पीत दुकूल नवीन फबै॥