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कथा-प्रसंग
१— नारद (छंद १६, बाल०)

नारदजी पूर्वजन्म में वेदवादी ऋपियों के दासी के पुत्र थे। माँ ने इन्हें ऋषियों की सेवा के लिए रख दिया था। ये मन लगाकर श्रद्धापूर्वक उनके सेवा करते थे। उन मुनियों को जो जूठन बचता था उसी को खाकर अपना पेट भरते थे, इसके प्रभाव से उनका अतःकरण शुद्ध हो गया। ऋषियों ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें उपदेश दिया जिससे उनके मन में दृढ़ भक्ति पैदा हो गई। ऋषियो के चले जाने पर कुछ दिनों बाद उनकी माता सर्प काट लेने के कारण मर गई। तब वे उत्तर दिशा में जाकर तपस्या करने लगे। लेकिन अनुपयुक्त शरीर होने के कारण ध्यान जमता नहीं था। एक दिन काल पाकर उन्होंने अपना शरीर छोड़ दिया और जब ब्रह्माजी जगत् की रचना करने लगे तब मरीचि, अगिरा आदि ऋषियों के साथ उत्पन्न हुए। तब से वे वीणा लिए सर्वत्र हरिगुण गाते विचरा करते हैं, उनकी गति कहीं भी नहीं रुकती।

२— अहल्या (छंद ३१, बाल०)

एक बार ब्रह्माजी ने अपनी इच्छा से एक परम मनोहर कन्या उत्पन्न की जिसकी सुन्दरता देखकर सभी मोहित होते थे। ब्रह्माजी उसे गौतमजी को धरोहर की भाँति सौंपकर चले गए। कुछ दिन बाद ब्रह्माजी ने उनसे वह कन्या मॉगी तब उन्होंने ज्यो की त्यों उन्हे सौपदी। ब्रह्माजी ने गौतमजी की जितेन्द्रियता देखकर उस कन्या का विवाह उन्हीं के साथ कर दिया। यह बात इन्द्र को बहुत बुरी लगी। एक दिन जब गौतमजी बाहर गए थे, इन्द्र गौतम को बनावटी रूप धारण करके आया और उसने धोखा देकर अहल्या के साथ संभोग किया। वह संभोग कर ही रहा था कि गौतम ऋषि आ पहुँचे। अहल्या ने घबड़ाकर इन्द्र से उसका नाम पूछा; उसने नाम। बता दिया। अहल्या इसे छिपाकर देर से द्वार खोलने आई। ऋषि ने देर से आने का कारण पूछा, अहल्या ने इसे छिपाया। तब ऋषि ने अपने तपोबल से सारा हाल जानकर इन्द्र को शाप दिया कि तेरे शरीर में सब भग हो जायँ