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बालकाण्ड


और महादेव चौंक उठे; वराह, कछुवा और शेप सबके सव हिलने लगे। जब रामचन्द्रजी ने शिव का धनुष तोड़ा तो ऐसी भारी आवाज़ हुई कि ब्रह्माण्ड फट गया॥

शब्दार्थ—भुवि= भारी। पब्बै= पर्वत। हिमभानु= चन्द्रमा। चण्ड= तीक्ष्ण।

घनाक्षरी
[१२]


लोचनाभिराम घन-स्याम रामरूप सिसु,
सखी कहैं सखी सों तू प्रेम पय पालि,री।
बालक नृपालजृ के ख्याल ही पिनाक तोंर्यो,
मंडलीक-मंडली-प्रतापदाप दालि री॥
जनक को, सिया को, हमारो, तेरो, तुलसी को,
सबको भावतो ह्वैहै मैं जो कह्यौ कालि री।
कौसिला की कोखि परतोषि तन वारिए री,
राय दसरत्थ की बलैया लीजै आलि री॥

अर्थ—सखी सखी से कहती है कि तू लोचन-अभिराम (नेत्रों को सुख देनेवाले) बादल से श्याम रूप-वाले राम बालक को प्रेम के दूध से पाल। इस राजा के बालक ने सहज ही में धनुष तोड़ डाला और बड़े बड़े राजाओं की मण्डली के बल के गर्व को नाश कर दिया। जनक, सीता, हमारा, तुम्हारा और तुलसीदास सबका प्यारा होगा, यह मैंने तो कल ही कहा था। कौशल्या की कोख पर खुश होकर अपने तन को निछावर करना चाहिए, और हे आली! राजा दशरथ की बलैया लेनी चाहिए (जिन्होंने ऐसा पुत्र उत्पन्न किया)।

शब्दार्थ—मंडलीक= राजा। पिनाक= धनुष। दाप= गरूर, गर्व। वोषि= प्रसन्नता।

[१३]


दूब दधि रोचना कनकथार भरि भरि,
आरती सँवारि बर नारि चलीं गावतीं।
लीन्हें जयमाल करकंज सोहैं जानकी के,
“पहिराओ राघो जू को” सखियाँ सिखावतीं॥