पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/१२

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भूमिका

यह प्रकट करते हुवे हमको बड़ा हर्ष होता है कि हिन्दी-संसार ने इस पुस्तक का अच्छा आदर किया। इसका पहला संस्करण दीपावली सं॰ १९७४ को निकला था। वह एक वर्ष के भीतर ही हाथों हाथ निकल गया। इस दूसरे संस्करण में बहुत कुछ परिवर्तन और परिवर्द्धन किया गया है। पहले संस्करण में केवल ५२ कवियों का ही वर्णन था; किन्तु दूसरे संस्करण में उनकी संख्या बढ़ाकर ८९ तक कर दी गई है। अब हरिश्चन्द्र के पहले के प्रायः सब सुप्रसिद्ध कवि इसमें आ गये हैं। इस परिवर्द्धनका कारण यह है कि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के समय से हिन्दी का नवीन युग प्रारम्भ होता है। अतएव यह उचित समझा गया, कि हरिश्चन्द्र से पहले के सब कवि पहले भाग में हीं आ जायँ, जिससे दूसरा भाग हरिश्चन्द्र के समय से प्रारंभ हो। इस वृद्धि के सिवाय प्रारम्भ में हिन्दी-भाषा का संक्षिप्त इतिहास और अंत में "कौमुदी-कुञ्ज" नाम से कुछ फुटकर कविताओं का एक संग्रह और भी जोड़ दिया गया है। जहाँ इतनी वृद्धि की गई, वहाँ शब्दार्थ-कोश निकाल भी दिया गया। शब्दार्थ-कोश निकाल देने का यह कारण है कि यदि पुस्तक में आये हुये सब कठिन शब्दों का अर्थ और पदों का भावार्थ दिया जाता, तो मूल पुस्तक से शब्दार्थ कोश की पृष्ठ संख्या कम न होती और उसके अनुसार दाम भी बढ़ाना पड़ता। प्रथम संस्करण में जितना अर्थ दिया गया है उससे कुछ विशेष लाभ नहीं जान पड़ा। कितने हीं कठिन शब्दों के अर्थ लिखने से रह गये। अधूरा काम हम ठीक नहीं समझा। इसी से शब्दार्थ-कोश निकाल दिया।