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पहले संस्करण से इस संस्करण में दो एक विशेषताएँ और हैं। इस बार महँगी के समय में भी कागज़ बढ़िया लगाया गया है; छपाई भी पहले से सुन्दर हुई है, जिल्द में कोई कमी नहीं की गई फिर भी दाम नही दो रुपया ही रक्खा गया।

जहाँ तक मिल सके, कवियों के ग्रंथों को हमने स्वयं पढ़ कर यह पुस्तक लिखी है। फिर भी मिश्र-बंधु-विनोद, सतबानी पुस्तक माला और हिन्दी साहित्य सम्मेलन की वार्षिक लेख माताओं से हमने बड़ी सहायता ली है। अतएव उनके लेखकों के हम बहुत कृतज्ञ हैं।

जो लोग हिन्दी-साहित्य का ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं, उनके लिये तो यह पुस्तक उपयोगी है ही, किन्तु जो लोग केवल कविता के रसिक हैं, वे भी इससे बड़ा आनन्द उठा सकते हैं। शृंगार रस की कुछ कवितायें ऐसी हैं जिनके विषय में लोग कह सकते हैं कि उनका इस संग्रह में न आना ही अच्छा था। इनके विषय में मेरा यह निवेदन है कि कविता का चमत्कार दिखाने के लिये ही हमने वैसा किया है, कुछ इस भाव से नहीं कि हमें वैसी कविताएँ अधिक प्रिय हैं।

हिन्दी–साहित्य–सम्मेलन ने इस पुस्तक को मध्यमा के कार्स में रक्खा है, इसलिये मैं सम्मेलन को सहर्ष धन्यवाद देता हूँ।

कविता-कौमुदी के दूसरे भाग का विज्ञापन इस पुस्तक के अंत में देखिये।

 
प्रयाग,
होली, सं॰ १९७५
निवेदक—
लेखक और प्रकाशक।