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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/१४८

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तुलसीदास
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लहरें मार रहा था। प्रेम की अटूट धारा जो क्षण भर पहले स्त्री की ओर बह रही थी, उसी को दूसरे ही क्षण में इन्होंने श्रीराम की ओर फेर दी, जो इनके जीवन के अन्तिम दम तक बड़े वेग से बहती रही। उस प्रेम की धारा ने तुलसीदास को अजर अमर कर दिया। कौन जानता था कि एक छोटी सी घटना से इनके जीवन का प्रवाह इस प्रकार बदल जायगा।

घर छोड़ने के पीछे एक बार स्त्री ने यह दोहा इनके पास लिख भेजा:—

कटि की खीनी कनक सी रहत सखिन सँग सोय।
मोहिं फटे की डर नहीं अनत कटे डर होय॥

इसके उत्तर में गोसाई जी ने लिखा:—

कटे एक रघुनाथ सँग बाँधि जटा सिर केस।
हम तो चाखा प्रेम रस पतिनी के उपदेस॥

वृद्धावस्था में एक दिन तुलसीदास चित्रकूट से लौटते हुये बिना जाने अपने ससुर के घर टिके। इनकी स्त्री भी वृद्धा हो चुकी थी। उसने पहले तो उन्हें पहचाना नहीं, अतिथि सत्कार के लिये चौका आदि लगा दिया। पीछे बात चीत होने पर उसने पहचाना कि ये मेरे पति हैं। उसकी इच्छा हुई कि मैं भी पति के साथ रहूँ। रात भर आगा पीछा सोच कर उसने सबेरे अपने को तुलसीदास के सामने प्रकट किया, और अपनी इच्छा कह सुनाई। परन्तु गोसाई जी ने अस्वीकार किया। इस अचानक भेंट का प्रभाव दोनों ओर कैसा पड़ा होगा, यह अनुमान करने पर बड़ा करुण जान पड़ता है। गोसाई जी और उनकी स्त्री को अपनी युवा-